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Milkypur में किसके सिर सजेगा जीत का सेहरा, फलोदी सट्टा बाजार ने बढ़ाई दिग्गजों की टेंशन

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अयोध्या की मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव के नतीजे 8 फरवरी को घोषित हो जाएंगें. मगर इस सीट पर हुए उपचुनाव के नतीजे दो पार्टियों के लिए साख का सवाल बन गए हैं. ये दो दिग्गज पार्टियां और कोई नहीं बल्कि भाजपा और सपा हैं. जानकारों की मानें तो इस सीट पर इन दोनों पार्टियों के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिल रहा है. 

फलोदी सट्टा बाजार ने तय की हार-जीत 

इस सीट पर 5 फरवरी को हुए मतदान एक नया रिकॉर्ड कायम कर दिया है. जी हां मिल्कीपुर में अब तक 17 बार हुई वोटिंग में पहली बार ऐसा देखने को मिला है कि यहां पर 65.25 फीसदी मतदान हुआ है. इससे साफ तौर पर वोटरों के मन बात पता चल रही है कि इस बार के चुनावों को लेकर वोटरों ने भी अपनी खासी दिलचस्पी दिखाई है. बहरहाल इस सीट पर हुए चुनावों के नतीजे तो 8 फरवरी को घोषित कर ही दिए जाएंगे, मगर उससे पहले ही फलोदी सट्टा बाजार ने ये तय कर दिया है कि किस पार्टी की हार होगी और किस पार्टी की जीत. 


सपा को चंद्रशेखर की एंट्री ने भी दिया झटका

हमेशा से ही मिल्कीपुर सीट पर समाजवादी पार्टी का दबदबा कायम रहा है. मगर इस बार का मुकाबला काफी तगड़ा नजर आ रहा है जो कि सपा और बीजेपी दोनों के लिए ही पार पाना कठिन दिख रहा है. तो वहीं दूसरी ओर चंद्रशेखर आजाद की पार्टी से सूरज चौधरी के चुनावी मैदान में कदम रखने के बाद सपा की मुश्किलों में और इजाफा हो गया है. एक समय सपा के करीबी रह चुके सूरज चौधरी के चुनाव लड़ने से सपा के वोट बैंक में सेंध लगती हुई साफ तौर पर नजर आ रही है. इतना ही नहीं भाजपा को सपा से 4 फीसद ज्यादा वोट मिलना भी इसी वजह हो सकता है.

बीजेपी के लिए भी जीत की राह लग रही मुश्किल 

वहीं बात करें भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार चंद्रभानु पासवान की तो उन्हें भी कड़ी टक्कर मिल रही है. चंद्रभानु के नामांकन के वक्त जरूर जुलूस जैसा माहौल नजर आया था. मगर उनके समर्थन में की गई रैली के मंच से कई स्थानीय नेता ही नदारद रहे. जिससे साफ हो गया है कि चंद्रभानु को टिकट मिलने से पार्टी के अंदर ही नाराजगी की मंजर चल रहा है. ऐसे में पार्टी के भीतर चल रही इस अनबन से चंद्रभानु को काफी हद तक नुकसान हो सकता है. 

 
पासी वोटर करेंगे फैसला!

मिल्कीपुर सीट पर जातीय समीकरण की बात करें तो ये अहम भूमिका निभा सकता है. यहां पर 1.60 लाख दलित वोटर हैं. जिनमें पासी समुदाय का प्रभाव काफी अधिक माना जाता है. चूंकि मायावती की बसपा इस बार चुनाव से बाहर है और ना ही किसी दल को समर्थन दिया है. इसलिए पासी वोटों में बिखराव होने के आसार ज्यादा दिखाई दे रहे हैं. वहीं भाजपा इस चुनाव में ब्राह्मण, ठाकुर, ओबीसी और गैर पासी दलित मतों पर अधिक फोकस कर रही है.  

सपा का गढ़ है मिल्कीपुर सीट 

पारंपरिक रूप से मिल्कीपुर विधानसभा सीट समाजवादी पार्टी का गढ़ है. पिछले 5 चुनावों में से केवल एक बार ही बीजेपी को जीत का स्वाद चखने को मिला. जबकि चार बार सपा ने जीत का परचम लहराया है. यही वजह है कि सपा के उम्मीदवार अजीत प्रसाद को इस सीट पर फायदा मिलने की उम्मीद ज्यादा नजर आ रही है. 

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