हरियाणा विधानसभा चुनावों के परिणामों को लेकर कांग्रेस का दावा फेल साबित हो गया है. जहां कांग्रेस एग्जिट पोल के नतीजों में एकतरफा जीत हासिल कर रही थी. वहीं मंगलवार को आए रुझानों ने कांग्रेस के जोश को धूल धूसरित कर दिया है. एग्जिट पोलों के नतीजों में जहां कांग्रेस की सरकार बन रही थी. वही जनता का रुझान भाजपा के पाले में जा गिरा. वहीं अनुमान लगाया जा रहा है कि पार्टी का ओवर कॉन्फिडेंस और अदरूनी कलह ने कांग्रेस की लुटिया डुबो दी है.
जाटों के गुस्से को भुनाने की कोशिश कांग्रेस के नहीं आई काम
माना जा सकता है कि जिस तरह से कांग्रेस को भाजपा सरकार के खिलाफ जनता के गुस्से का जो फीडबैक मिला उसे लेकर पार्टी बहुत ओवर कॉन्फिडेंस में थी. कहीं ना कहीं यही ओवर कॉन्फिडेंस कांग्रेस पार्टी को भारी पड़ गया. हरियाणा में जाटों की आबादी लगभग 25 फीसदी है और करीब 40 सीटों पर जाटों का दबदबा है. कृषि कानूनों को लेकर किसानों का गुस्सा, विनेश फोगाट, साक्षी मलिक जैसे खिलाड़ियों पर हुए अन्याय पर रोष, पिछली दो सरकारों में जाटों की उपेक्षा का दंश जैसी वजहों के चलते जाट भाजपा के खिलाफ थे. इन सभी बातों की वजह से कांग्रेस ने जाटों का गुस्सा अपने पक्ष में मान लिया और अनुमान लगाया कि जाटों का एकमुश्त वोट उसे ही मिलेगा. मगर कांग्रेस ये नहीं समझ पाई कि बीजेपी ने पिछली दो सरकारें इन्हीं जाटों के खिलाफ गैर जाट जातियों को एकजुट करके बनाई थीं. इन जातियों में बनिया-ब्राह्मण-राजपूत प्रमुख तौर पर आते हैं. इस बार भी ओबीसी जातियों को सीएम सैनी ने जाटों के खिलाफ गोलबंद किया. जैसे ही जाटों की एकजुटता के बारे में गैर जाट जातियों को अहसास हुआ वे काउंटर पोलराइज हो गईं. साथ ही इस बार भी जाट वोट बांटने के लिए जेजेपी, इनेलो जैसी पार्टियां जैसी पार्टियां भी मैदान में मौजूद थीं.
सीएम बदलने का फॉर्मूला रहा बीजेपी के लिए फायदेमंद
बीजेपी ने पूर्व सीएम खट्टर की अलोकप्रियता को भी समय रहते भांप लिया. जिसके बाद बीजेपी ने नायब सिंह सैनी को सीएम बनाकर इस मुद्दे को खत्म करने की कोशिश की. गुजरात में पहले ही ये प्रयोग भाजपा कर चुकी थी. परिणाम बताते हैं ये दांव भी बीजेपी के पक्ष में काम आया. सैनी ने ना सिर्फ खट्टर सरकार के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी को कम किया बल्कि वे पिछड़ी जाति के वोट को भाजपा के पक्ष में लाने में भी सफल रहे. इसके साथ ही बीजेपी ने ये भी सावधानी बरती कि पूरे इलेक्शन के दौरान कहीं भी खट्टर नजर ना आएं. पूरे कैंपेन से खट्टर को दूर रखा गया. सैनी ने पिछड़ा वर्ग के लोगों के लिए कई योजनाएं शुरू कीं. जिनमें केंद्र सरकार की गरीब कल्याण और किसानों को फायदा पहुंचाने की योजनाओं से बहुत मदद मिली. ऐसा मानने में भी कोई गुरेज नहीं है कि डायरेक्ट बेनेफिट वाली इन योजनाओं ने हरियाणा की भाजपा सरकार की बहुत मदद की है.
सैलजा की चुप्पी ने की बीजेपी की काफी मदद
चुनाव के बाद से ही बीजेपी लगातार कांग्रेस की वरिष्ठ नेता कुमारी सैलजा के बहाने दलित उपेक्षा की बात कर रही थी. बीजेपी सैलजा को दलित आत्म सम्मान का मुद्दा बना रही थी. इस मुद्दे पर सैलजा भी चुप्पी साधकर अघोषित तौर पर भाजपा के कैंपेन को मदद ही कर रही थीं. हालांकि वोटिंग के पहले जरूर उन्होंने कुछ बयान पार्टी के फेवर में दिए लेकिन सैलजा को कांग्रेस वक्त पर साधने में कामयाब नहीं हो रही. चूंकि राज्य में दलित जातियां भी लगभग 19 फीसदी हैं. इनके लिए 17 सीटें रिजर्व हैं. पिछली बार भाजपा ने 4 सीटों पर ही जीत हासिल की थी जबकि इस बार पार्टी 7 सीटें जीतने में सफल हो गई है. ऐसा भी मान सकते हैं कि इनेलो, जेजेपी और बसपा, आजाद समाजवादी पार्टी जैसी पार्टियों के गठबंधन ने भी दलितों के वोट काटे. पिछले लोकसभा इलेक्शन में राज्य में कांग्रेस 5 लोकसभा सीटें जीतने में कामयाब हुई थी जिसके पीछे दलित वोटों का बड़ा हाथ माना गया था. इस बार ऐसा लगता है कि दलित, ओबीसी, सवर्ण गठजोड़ के माध्यम से भाजपा पिछली बार छिटके वोटबैंक को साधने में काफी हद तक सफल रही है.
आप से गठबंधन ना होना भी कांग्रेस की मात की एक वजह
हरियाणा में कांग्रेस और आप का अलायंस नहीं बन पाया. जिसकी वजह ये रही कि आप जितनी सीटें राज्य में मांग रही थी कांग्रेस उतनी देने को तैयार नहीं थी. जिसकी वजह से दोनों पार्टियों के बीच समझौता नहीं हो पाया. आप ने राज्य की सभी सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े किए. चूंकि आप और कांग्रेस का वोट तकरीबन एक ही तबके से आता है. इसलिए इन वोटों में कहीं न कहीं AAP ने सेंध लगा दी. कई सीटों पर हार-जीत में आप के पक्ष में गए वोटों ने भी बड़ी भूमिका निभाई है.