कहा जाता है कि सरकारी कामों में देर लगती है. मगर क्या आप इस बात पर यकीन करेंगे कि सरकारी कामों को लेकर इंसान मौत को ही प्यारा ना हो जाए. मगर सरकारी महकमे से उसे राहत नहीं दी जाती है. ऐसा एक जगह नहीं होता है इस तरह के वाकये हर जगह देखने को मिलते हैं फिर चाहें वो कोई भी सरकारी दफ्तर क्यों ना हों. कुछ लोगों में अपनी आवाज उठाने की हिम्मत नहीं होती. तो कुछ लोगों को ऐसा कोई मंच नहीं मिलता जहां वे अपनी बात रख सकें. दरअसल ये मामला ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण का है. चलिए आपको भी बताते हैं कि किस तरीके से सरकारी अधिकारी रसूख वाले बिल्डरों के साथ मिलीभगत करके गरीब किसानों का हक मार रहे हैं.
ये है पूरा मामला
दरअसल चिपियाना खुर्द के धनीराम की हाल ही में तनाव के चलते हार्टअटैक से मौत हो गई है. धनीराम के तीन बच्चे व पत्नी कम आयु में अनाथ हो गए हैं. जिसका जिम्मेदार कहीं न कहीं प्राधिकरण के वह अधिकारी हैं, जो 2016 से 2023 तक यहां तैनात रहे. धनीराम के पांच और भाई सुरेंद्र, रामकुमार, रोशन लाल, ईश्वर, हरपाल हैं. छह भाइयों और माता सावित्री के नाम गांव के खसरा नंबर 192 पर एक-एक हजार वर्ग गज आबादी की भूमि थी. जमीन पर सभी भाइयों के मकान बने थे. ग्रेनो प्राधिकरण ने मौके का सर्वे किए बिना ही 2010 में जमीन का अधिग्रहण कर लिया. किसानों ने आपत्ति जताई. इसके बावजूद धारा-छह व नौ की कार्रवाई कर मुआवजा राशि निर्धारित कर दी गई. किसानों ने मौके पर मकान बने होने की बात कहकर मुआवजा लेने से इन्कार कर दिया. कब्जा भी नहीं दिया. जिसके बाद प्राधिकरण ने 3 मई 2016 को बलपूर्वक कब्जा लेकर बिल्डर को जमीन आवंटित कर दी. समझौते में छहों भाइयों को रिछपाल गढ़ी के खसरा नंबर 19 पर 2500 वर्गमीटर जमीन देना हुआ. तभी से किसन अपनी जमीन रिछपाल गढ़ी में मांग रहे हैं. मगर प्राधिकरण के अधिकारी शासन स्तर से आबादी शिफ्टिंग पालिने स्वीकृत न होने का बहाना बनाल टरका रहे हैं. वहीं प्राधिकरण के चक्कर काटते-काटते धनीराम मौत की नींद सो गए हैं लेकिन जिम्मेदारों के कानों में ना तो जूं रेंग रही है ना ही इंसानियत ही बची है.
किसान की जमीन हड़प कर बैठी अथॉरिटी
मृतक धनीराम के भाई रोशनलाल ने जानकारी देते हुए बताया कि हम सीओ साहब से मिलने के लिए बैठे हैं. सीओ साहब आए नहीं हैं और एसीईओ साहब से भी मिले थे. हमारी जमीन 2016 में पुलिस बल के साथ ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी और बिल्डरों द्वारा मिलकर ले ली गई है. हमें दूसरी तरफ मौखिक रूप से जमीन देने का निर्णय ले लिया गया है लेकिन वो जमीन अभी तक हमें लिखित रूप में नहीं दे रहे हैं. हमसे कहा जा रहा है कि जब शिफ्टिंग की नीति आएगी तो हम आपको ये लिख के देंगे. हमने अब तक मुआवजा भी नहीं उठाया है. हमारी कुल मिलाकर पौने सात बीघा जमीन थी. शिफ्टिंग में मौखिक रूप से जमीन देने का निर्णय लिया गया है 25 सौ वर्ग मीटर का. 7 साल से हम लगातार चक्कर काट रहे हैं. मेरे भाई धनीराम जी मेरे साथ आते थे उनका स्वर्गवास हो गया है. मरने से पहले मेरे भाई ने ये ही कहा था कि मैं अथॉरिटी जाऊंगा. उधर चक्कर लगाता लगाता मर गया तुम नहीं जा रहे. हमारी जमीन का फैसला नहीं हो रहा है. हम कुल 6 भाई थे दो भाइयों का स्वर्गवास हो गया है.
सीओ साहब से मिलने नहीं दिया जा रहा- रोशनलाल
रोशनलाल ने आगे बताया कि सीओ साहब से तो बात हुई थी तो वो बोल रहे थे कि हम करेंगे लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ है. सीओ साहब से मिलने ही नहीं दिया जा रहा है. हमारी आबादी जमीन थी 12 कमरे बने हुए थे और 5 फुट की चारदीवारी थी. अभी तो ऐसे ही रह रहे हैं. 7 सालों से लगातार चक्कर काटने को मजबूर हैं. मगर कोई सुनवाई नहीं की जा रही है.