यूपी की 9 सीटों पर होने वाले उपचुनावों को लेकर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कांग्रेस के लिए मात्र दो सीटें छोड़ी हैं. देखा जाए तो अखिलेश के इस कदम से साफ हो गया है कि कांग्रेस को सपा ने दो सीटें दी हैं उन्हीं सीटों पर उसे चुनाव लड़ना होगा. इस बार सपा किसी भी तरह के दबाव में भी नहीं आने वाली है. सूत्रों के अनुसार अखिलेश यादव ने राहुल गांधी से फोन पर बात करके ये भी बता दिया है कि गठबंधन के लिए तय की गई दो सीटों पर ही कांग्रेस को चुनाव लड़ना चाहिए. अगर कांग्रेस और सपा यूपी में साथ मिलकर चुनाव नहीं लड़ते हैं तो इसका खामियाजा इंडी गठबंधन को उत्तर प्रदेश भुगतना पड़ सकता है. साथ ही लोगों में इससे एक गलत मैसेज भी जाएगा, जिसका सीधा असर 2027 के विधानसभा चुनाव पर भी पड़ सकता है.
सपा पर दबाव बनाने में जुटी कांग्रेस
हालांकि प्रदेश कांग्रेस कमेटी लगातार सपा पर दबाव बनाने की कोशिशें कर रही है. इन्हीं कोशिशों के तहत ये भी कह दिया गया है कि कांग्रेस उन दो सीटों पर चुनाव नहीं लड़ेगी. फिलहाल अखिलेश यादव यूपी कांग्रेस कमेटी के किसी भी सदस्य से बात नहीं कर रहे हैं. इसके लिए अखिलेश ने अपने प्रदेश अध्यक्ष और प्रदेश प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी और उदयवीर सिंह को अधिकृत कर दिया है. अखिलेश यादव की बात सीधे कांग्रेस के आलाकमान से ही चल रही है.
कांग्रेस के लिए सपा मजबूरी भी और जरूरी भी
दरअसल समाजवादी पार्टी चाहती है कि कांग्रेस गठबंधन में तो बनी रहे लेकिन एक छोटी साझेदारी के तौर पर. सपा के रणनीतिकारों का मानना हैं कि यूपी में कांग्रेस का कोई अपना बेस नहीं है. लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने जो सीटें जीती हैं वह भी समाजवादी पार्टी के कोर वोट बैंक की वजह से जीती हैं. फिलहाल कांग्रेस के पास मौजूदा विधानसभा में सिर्फ दो सीटें ही हैं. सपा का मानना है कि कांग्रेस विधानसभा चुनाव में अपने अकेले के बूते कोई कमाल नहीं दिखा सकती है. कांग्रेस के लिए समाजवादी पार्टी मजबूरी भी है और जरूरी भी. हालांकि समाजवादी पार्टी के कुछ रणनीतिकार इस बात को मानते हैं कि यूपी में कांग्रेस को साथ रखना चाहिए. इसके पीछे उनका अपना तर्क है कि कांग्रेस के होने की वजह से दलित और मुस्लिम वोटरों के बिखराव को रोका जा सकता है.
कांग्रेस के पाले में सपा ने डाली गेंद
इंडी गठबंधन का फायदा कांग्रेस और सपा को 2024 के लोकसभा चुनाव में मिल चुका है. ऐसी हालत में गठबंधन तोड़ने का रिस्क ना तो समाजवादी पार्टी लेना चाहती है और ना ही कांग्रेस. इसलिए कहा जा रहा है कि ऐसा हो सकता है कि कांग्रेस समाजवादी पार्टी के दो सीटों के प्रस्ताव को स्वीकार कर ले. यूपी में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का गठबंधन दबाव की राजनीति की भेंट चढ़ जाएगा या फिर तय शर्तों पर ही आगे बढ़ेगा ये फैसला फिलहाल कांग्रेस के पाले में है. वहीं कांग्रेस नेताओं की मानें तो उनका कहना है कि अगर कांग्रेस सपा द्वारा दी गई दो सीटों पर चुनाव लड़ती है तो इससे कार्यकर्ताओं में निराशा आएगी. कार्यकर्ताओं में ये मैसेज जाएगा कि जो सीटें सपा जीत नहीं सकती, उन्हीं दो सीटों को कांग्रेस के लिए छोड़ दिया है.
सपा के रवैये से प्रियंका गांधी खासी नाराज
इतना ही नहीं खबरें ये भी हैं कि प्रियंका गांधी की टीम इस बात को लेकर भी काफी नाराज है कि समाजवादी पार्टी ने उत्तर प्रदेश में बिना किसी बैठक और आपसी सहमति के ही अपनी 6 सीटें घोषित कर दी. जबकि सपा को गठबंधन का साथी होने के कारण कांग्रेस को विश्वास में लेकर बातचीत के बाद ही सीटों की घोषणा करनी चाहिए थी. खुद समाजवादी पार्टी जो सीटें जीत नहीं सकती उसे ही कांग्रेस के लिए छोड़ा गया है. सपा ने कांग्रेस पार्टी को यूपी उपचुनाव में गाजियाबाद और खैर सीट दी है. माना जाता है कि ये दोनों सीटें बीजेपी की परंपरागत सीटें हैं. ऐसे में उपचुनावों में यहां पर जीत दर्ज करना कांग्रेस के लिए टेढ़ी खीर होने के साथ ही एक बड़ी चुनौती भी है. क्योंकि अगर कांग्रेस इन दोनों सीटों पर जीत जाती है तो उसकी वाहवाही होगी और अगर हार जाती है तो कहा जाएगा कि दो सीटों पर भी कांग्रेस जीत का परचम नहीं लहरा सकी.