अमेठी गांधी-नेहरू परिवार की परंपरागत सीट मानी जाती है। कांग्रेस ने लंबे समय तक इस सीट पर राज भी किया है, लेकिन अब अमेठी से गांधी परिवार के लगभग पांच दशकों के चुनावी जुड़ाव पर फिलहाल विराम लग गया है। कांग्रेस पार्टी ने इस बार किशोरी लाल शर्मा को यहां से अपना उम्मीदवार बनाया है। किशोरी लाल शर्मा का गांधी परिवार से वर्षों का नाता है। किशोरी लाल शर्मा परिवार के प्रतिनिधि के नाते अरसे से अमेठी और रायबरेली से जुड़े रहे हैं लेकिन वहां के वोटरों के बीच उनकी पहचान गांधी परिवार के सहयोगी तक सीमित रही है। तो वहीं शर्मा की उम्मीदवारी के बाद अटकलों और कयासों का बाजार गर्म हो गया है। हर कोई इसी उधेड़बुन में लगा है कि आखिर ऐसी कौन सी वजह है जिसके कारण गांधी परिवार का इस सीट से मोहभंग हो गया है।
25 साल बाद गांधी परिवार का कोई भी सदस्य नहीं लड़ेगा चुनाव
अमेठी गांधी-नेहरू परिवार की परंपरागत सीट मानी जाती है। संजय, राजीव, सोनिया से लेकर राहुल गांधी तक ने इस सीट का प्रतिनिधित्व किया है। 1999 से 2019 तक इस सीट पर गांधी परिवार का कब्जा था। 1999 में सोनिया गांधी यहां से चुनाव जीतीं। 2004 में राहुल गांधी यहां से पहली बार सांसद बने। लगातार तीन बार वो यहां से चुनाव जीते। मगर 2019 में राहुल को बीजेपी की स्मृति ईरानी ने शिकस्त दी। राहुल को 50 हजार से ज्यादा वोटों से हार का सामना करना पड़ा। देखा जाए तो 2019 की हार के बाद से ही राहुल अमेठी से दूरी बनाए हुए हैं। समर्थक भले न मानें लेकिन सच यही है कि अमेठी, गांधी परिवार के मोहपाश से काफी कुछ उबर चुकी है। उसे सिर्फ पहचान दिलाने वाले ही नहीं बल्कि काम करने और उसकी जरूरतों के लिए लड़ने वाले प्रतिनिधि की तलाश रहती है। राहुल गांधी इस कसौटी पर खरे नहीं उतर सके और 2019 में अमेठी ने उन्हें ठुकरा दिया। हार के बाद राहुल ने अमेठी से दूरी बनाई तो वोटरों ने बाद के विधानसभा सहित हर अगले चुनाव में कांग्रेस को भुला दिया।
आखिर क्या है राहुल की अमेठी छोड़ने की वजह?
2019 की हार के बाद 2024 में एक बार फिर अमेठी के चुनावी मैदान में उतरने पर क्षेत्र को भूल जाने के लिए उनकी घेराबंदी होना तय थी। इस मुद्दे पर सिर्फ प्रतिद्वंदी स्मृति ईरानी ही नहीं बल्कि तमाम मुखर वोटरों के सवाल राहुल को परेशान करने को तैयार थे। इससे भी एक बड़ा सवाल दोनों स्थानों से जीतने की हालत में जनता को यह भरोसा दिलाना बड़ी चुनौती होती कि वे वायनाड छोड़ेंगे और अमेठी में टिकेंगे ? हालांकि इस सवाल से उन्हें रायबरेली में भी रूबरू होना पड़ेगा, लेकिन इस मुद्दे पर अमेठी में स्मृति ईरानी के हमले कहीं अधिक पैने और तेज होते। जिनसे बचने के लिए राहुल ने अमेठी से दूरी बनाना ही उचित समझा।
1976 में शुरू हुआ अमेठी और गांधी परिवार का मोह
बता दें कि गांधी परिवार ने 1976 में अमेठी में दस्तक दी। 1977 के पहले चुनाव में कांग्रेस के संजय गांधी चुनाव हार गए थे। फिर 1980 में उन्होंने चुनाव जीता। मगर उसी साल उनका विमान हादसे में निधन हो गया। इसके बाद 1981 में यहां उपचुनाव हुआ। इसके बाद उनके बड़े भाई राजीव गांधी चुनाव लड़े और जीते। इसके बाद से वो लगातार तीन लोकसभा चुनाव जीते। 1984, 1989, 1991 में राजीव गांधी लगातार जीते। 1991 में राजीव गांधी के निधन के बाद यहां उपचुनाव हुआ। राजीव के सहयोगी व करीबी कैप्टन सतीश शर्मा ने विरासत संभाली। 1991 में हुए उपचुनाव में उन्होंने जीत हासिल की। 1996 में भी उन्होंने बाजी मारी, लेकिन 1998 में हार गए। इस साल हुए चुनाव में बीजेपी के संजय सिंह ने जीत हासिल की थी। इसके बाद 1999 में फिर से सोनिया गांधी इस सीट पर पैठ बनाने में कामयाब हुईं थी।