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मिल्कीपुर उपचुनाव के बीच सामने आया दलित युवती की नृशंस हत्या का मामला, बढ़ गई सियासी तपिश, सांसद ने कर दिया ये बड़ा ऐलान!

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अयोध्या की मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर उपचुनाव की जंग बीजेपी बनाम सपा की है. दलित सुरक्षित मिल्कीपुर सीट पर सपा से अवधेश प्रसाद के बेटे अजीत प्रसाद मैदान में हैं, जबकि बीजेपी से चंद्रभान पासवान चुनाव लड़ रहे में हैं. मिल्कीपुर में 17 साल पहले भी उपचुनाव में एक सांसद के बेटे की किस्मत दांव पर लगी थी और एक बार फिर से वैसा ही संयोग बन गया है. सांसद अवधेश प्रसाद को अपने बेटे अजीत को जीत दिलाने के लिए खासी मशक्कत करनी पड़ रही है.

दलित युवती की नृशंस हत्या के मामले ने पकड़ा तूल 
मिल्कीपुर उपचुनाव की सियासी गरमी के बीच अयोध्या में दलित युवती की नृशंस हत्या के मामले ने तूल पकड़ लिया है. दलित युवती की हत्या पर बोलते हुए सपा सांसद अवधेश प्रसाद फफक-फफककर रोने लगे और ये कहा कि अगर दलित बेटी को न्याय नहीं मिला, तो मैं अपने सांसद के पद से इस्तीफा दे दूंगा. अवधेश प्रसाद के इस बयान को सीएम योगी आदित्यनाथ ने सांसद की नौटंकी करार दे दिया है. 

मिल्कीपुर में बना 17 साल पहले का संयोग

बात करें 17 साल पहले के संयोग की तो मिल्कीपुर सीट मित्रसेन यादव की कर्मभूमि थी. मित्रसेन 2004 में लोकसभा सांसद थे और उनके बेटे आनंद सेन ने सपा से इस्तीफा देकर बसपा का दामन थामा. 2004 के मिल्कीपुर उपचुनाव में आनंद सेन बसपा के टिकट किस्मत आजमाने मैदान में उतरे थे लेकिन जीत हासिल नहीं कर सके. हालांकि 2002 और 2007 में आनंद सेन चुनाव जीतने में कामयाब हुए लेकिन सपा से इस्तीफा देकर बसपा से चुनाव लड़ना उन्हें महंगा पड़ गया था. 17 साल बाद मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर एक बार फिर से वैसा ही सियासी संयोग बन गया है. अवधेश प्रसाद फैजाबाद से सांसद बने, जिसके बाद उन्होंने विधानसभा सीट से इस्तीफा दे दिया. अब मिल्कीपुर विधानसभा सीट से अवधेश प्रसाद के बेटे अजीत प्रसाद उपचुनाव लड़ रहे हैं. भाजपा से चंद्रभान के प्रत्याशी के रूप में मैदान में सामने आने के बाद ये मुकाबला रोचक हो गया है. मित्रसेन यादव के बेटे तो उपचुनाव में नहीं जीत सके मगर अवधेश प्रसाद के कंधों पर बेटे अजीत प्रसाद की जीत का जिम्मा है. जिसके लिए अवधेश हर एक सियासी दांव चल रहे हैं लेकिन मुकाबला काफी कड़ा नजर आ रहा है. 

मिल्कीपुर विधानसभा सीट का सियासी समीकरण

मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर करीब 3.23 लाख वोटर्स हैं. यहां का जातीय समीकरण देखें तो सबसे ज्यादा दलित मतदाता यहां पर हैं, जिनकी संख्या 1 लाख से भी ज्यादा है. इसमें करीब 60 हजार सिर्फ पासी समाज का मतदाता है. जबकि 65 हजार यादव वोटर हैं. ब्राह्मण 50 हजार, मुस्लिम 35 हजार, ठाकुर 25 हजार, गैर-पासी दलित 50 हजार, मौर्य 8 हजार, चौरासिया 15 हजार, पाल 8 हजार, वैश्य 12 हजार के करीब वोटर हैं. इसके अलावा 30 हजार अन्य जातियों के मतदाता हैं. इस तरह दलित वोटर्स काफी अहम हो गए हैं लेकिन जीत की ताकत यहां पर गैर दलित वोटों के पास है.

जनता पर होगा अवधेश के आंसुओं का असर!

मिल्कीपुर उपचुनाव के नतीजों की बात करें तो भले ही सत्ता पर इसका कोई असर न पड़े लेकिन इसे  सियासी परसेप्शन बनाने वाला माना जा रहा है. जिसके बाद अब बीजेपी और सपा छोटे से छोटे समीकरण को साधने में जुट गई हैं, ताकि उपचुनाव में जीत की इबारत लिख सकें. इसी के तहत अवधेश प्रसाद दलित बेटी की हत्या को सियासी मुद्दा बनाने की कवायद करते हुए नजर आए. इसके लिए अवधेश प्रसाद को आंसू तक बहाने पड़ गया हैं. अब देखना है कि मिल्कीपुर के वोटर्स का दिल इसके बाद पसीजता है या फिर नहीं. 

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