साल 2027 की शुरुआत में यूपी में विधानसभा चुनाव होने हैं. इस बार के विधानसभा चुनाव में आर-पार की लड़ाई का माहौल अभी से बना हुआ है. सभी दलों ने अपनी कमर कस ली है. जहां एक ओर सपा 2024 के लोकसभा चुनावों की जीत के माहौल को भुनाने की कोशिश में है. तो वहीं दूसरी ओर बसपा सुप्रीमो मायावती ने टिकट बांटना भी शुरू कर दिया है. वहीं प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ चुनाव प्रचार में जुटे हुए हैं. कांग्रेस भी इस मामले में पीछे नहीं है. उसने भी सभी सीटों पर चुनाव प्रभारी तय कर दिए हैं. बीजेपी के सहयोगी दलों ने भी खूंटा गाड़ रखा है. बीजेपी ने बड़े नेताओं वाली टॉप 5 की कमेटी बनाई गई है. मंत्रियों वाली सुपर-30 पहले से ग्राउंड पर है. चुनाव अभी नहीं तो फिर कभी नहीं, जैसा हाल नजर आ रहा है. बता दें कि यूपी में विधानसभा की दस सीटों पर उपचुनाव हैं. इनमें से 5 सीटें पहले समाजवादी पार्टी के पास थीं. बीजेपी के खाते में 3 सीटें थीं. बीजेपी की सहयोगी पार्टी आरएलडी और निषाद पार्टी के पास एक-एक सीट थी.

मिल्कीपुर विधानसभा सीट बीजेपी के लिए सबसे खास
सबसे अधिक मारामारी तो मिल्कीपुर विधानसभा सीट के लिए मची हुई है. जहां से विधायक रहे अवधेश प्रसाद अब फैजाबाद से समाजवादी पार्टी के सांसद हैं. ये वही फैजाबाद है जिसमें अयोध्या भी आती है. उसी अयोध्या के राम मंदिर से बीजेपी को कई सालों तक राजनीतिक खाद पानी मिलता रहा है. अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के बाद भी बीजेपी यहां हार गई लेकिन ये हार बीजेपी पचा नहीं पा रही है. अब हर हाल में बीजेपी मिल्कीपुर उपचुनाव जीतकर धमाकेदार वापसी के जुगाड़ में लगी हुई है. योगी आदित्यनाथ पिछले हफ्ते दो बार अयोध्या का दौरा कर चुके हैं. अयोध्या जाकर सीएम योगी ने हिंदुत्व का कार्ड चल दिया है. वो जानते हैं धर्म का दांव ही अखिलेश यादव के सामाजिक समीकरण को तोड़ सकता है. योगी आदित्यनाथ ने कहा कि बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार हो रहा है पर विपक्ष का मुंह सिला हुआ है.

सपा से मिल्कीपुर सीट पर सांसद अवधेश प्रसाद चुनाव प्रभारी
अखिलेश यादव ने मिल्कीपुर चुनाव के लिए अपने सांसद अवधेश प्रसाद को प्रभारी बनाया है. अवधेश यहां से अपने बेटे को चुनाव लड़वाना चाहते हैं. वो कहते हैं कि इस बार बीजेपी को पचास हजार वोट भी नहीं मिलेंगे. अवधेश खुद दलित हैं. मिल्कीपुर में यादव और मुसलमान वोटरों का दबदबा है. इस विधानसभा में 65 हजार यादव और 35 हजार मुसलमान हैं. करीब 60 हजार पासी दलित हैं जबकि 50 हजार गैर पासी दलित वोटर हैं. ठाकुर वोटरों की संख्या भी 25 हजार के आसपास है. बीजेपी 2017 के विधानसभा चुनाव में ये सीट जीत चुकी है. तब गोरखनाथ यहां से विधायक चुने गए थे. बीजेपी इस बार यहां से बाराबंकी की पूर्व सांसद प्रियंका सिंह रावत के नाम पर भी विचार कर रही है. वहीं कांग्रेस ने अपने प्रवक्ता अखिलेश प्रताप सिंह को इस सीट पर चुनाव तैयारी के लिए प्रभारी बनाया है.

बीजेपी कोर कमेटी में बंटी विधानसभा सीटों की जिम्मेवारी
यूपी बीजेपी कोर कमेटी में पार्टी के 5 बड़े नेता मौजूद हैं. सरकार और संगठन के सभी बड़े फैसले यही कमेटी करती है. इसमें सीएम योगी आदित्यनाथ के साथ दोनों डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक भी शामिल हैं. इसके अलावा पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी और संगठन महामंत्री धर्मपाल सिंह भी इस कमेटी में हैं. इन सभी नेताओं ने आपस में दो-दो विधानसभा सीटों की जिम्मेदारी ले ली है. सीएम योगी ने मिल्कीपुर और कटेहरी की जिम्मेदारी अपने पास रखी है. सीएम योगी एक पार कटेहरी भी होकर आए हैं.

कटेहरी सीट का सपा ने शिवपाल यादव को दिया चार्ज
समाजवादी पार्टी ने सीएम योगी से मुकाबले के लिए शिवपाल यादव को यहां का चार्ज दिया है. कटेहरी से विधायक रहे लालजी वर्मा अब सांसद बन गए हैं. वे अपनी बेटी को यहां से चुनाव लड़वाना चाहते हैं. वैसे समाजवादी पार्टी की नजर बीजेपी के एक पूर्व विधायक पर भी है. ब्राह्मण समाज के ये नेता पहले भी समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़ चुके हैं. चुनाव की तारीखों का ऐलान अभी नहीं हुआ है. लेकिन टिकट को लेकर जबरदस्त मारामारी मची है. निषाद पार्टी किसी भी सूरत में अपने कोटे की दोनों सीटें छोड़ने को तैयार नहीं है. पिछली बार पार्टी के हिस्से में कटेहरी और मंझवा सीटें मिली थीं. बीजेपी के एक बड़े नेता ने कहा कमल निशान पर चुनाव लड़ना ही बेहतर होगा. निषाद पार्टी के चुनाव चिह्न को तो बहुत लोग जानते भी नहीं है. मुज़फ़्फ़रनगर की मीरापुर सीट आरएलडी अपने पास रखना चाहती है. यहां से विधायक रहे चंदन चौहान अब सांसद हैं.

बीजेपी के पास दमखम दिखाने का मौका
कांग्रेस और समाजवादी पार्टी का गठबंधन जारी है. दोनों पार्टियां एक दूसरे के खिलाफ भी दम दिखाने की तैयारी में है. सीटों के बंटवारे पर दोनों में कोई बातचीत नहीं हुई है लेकिन कांग्रेस की तरफ़ से कभी तीन तो कभी चार और एक नेता ने तो पांच सीटों की डिमांड कर दी है. यूपी से पार्टी के छह सांसद हैं. राहुल गांधी को छोड़कर बाकी सभी पांचों एमपी की उपचुनाव में अभी से ड्यूटी लगा दी गई है. बीजेपी के लिए जहां विधानसभा चुनाव 2027 एक मौका है. जिसे बीजेपी अपने हाथों से नहीं जाने देना चाहती है. तो वहीं सपा यूपी में अपना दबदबा कायम रखने के मूड में दिख रही है. बीएसपी के लिए ये अपनी साख को बचाए रखने का मौका है. वरना आने वाले समय में लोग भूल ही जाएंगे कि कोई मायावती भी थीं.

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