Greater Noida: यूपीसीडा यानि उत्तर प्रदेश राज्य औद्योगिक विकास प्राधिकरण का एक और कारनामा सामने आया है। ग्रेटर नोएडा के दादरी मेन रोड पर स्थित सूरजपुर औद्योगिक क्षेत्र में देवू मोटर्स के करोड़ों की ज़मीन को कौड़ियों के भाव पहले लीज डीड के नियमों के साथ छेड़छाड़ कर नीलाम कर दिया गया, जब मामला कोर्ट पहुंचा और यूपीसीडा इसे लेकर चौतरफा घिर गया। यही नहीं कोर्ट ने यूपीसीडा को नियमों के साथ छेड़छाड़ करने पर सवाल पूछा तो भूखंड का आवंटन रद्द करने की अफवाह फैला दी गई। साल 2023 के अप्रैल महीने में 21 साल बाद यूपीसीडा ने इसे शकुंतलम लैंड क्राफ्ट कंपनी को बेच दिया था। जब से ये कंपनी बिकी है, तब से यूपीसीडा लगातार सवालों के घेरे है। देवू मोटर्स के 204 एकड़ की जमीन को शकुंतलम लैंड क्राफ्ट को 362 करोड़ में बेचा गया था।

यूपीसीडा का ये कैसा खेल?

देवू मोटर्स की जमीन विवाद के मामले में यूपीसीडा ने आवंटन रद्द करने का अफवाह फैलाया और इसे यूपीसीडा की बड़ी जीत बताया। दरअसल जिस जमीन के आवंटन को रद्द करने की बात कही जा रही है, उस पर कंपनी को पहले से स्टे मिल चुका है। ऐसे में सवाल ये उठता है कि जब इस मामले में कंपनी को पहले ही स्टे मिल चुका है तो यूपीसीडा आवंटन रद्द करने का फैसला कैसे ले सकती है। सवाल ये भी क्या यूपीसीडा लोगों को भ्रमित करने का काम कर रही है।

इस मामले में कोर्ट ने क्या कहा?

डीआरटी और डीआरएटी की पुष्टि के बाद एक मई साल 2024 को बिक्री प्रमाण पत्र शकुंतलम लैंड क्राफ्ट को जारी किया गया था। इस मामले में रिट याचिका के माध्यम से निषेधाज्ञा राहत के लिए प्रार्थना करते हुए यूपीसीडा ने बॉम्बे उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। जिसे बॉम्बे उच्च न्यायालय ने दिनांक 17 मई को आदेश जारी कर अस्वीकार कर दिया था। अब यूपीसीडा ने इस आधार पर पट्टा रद्द कर दिया कि शकुंतलम कंपनी ने संपत्ति पर प्रभार हस्तांतरित करने से पहले उसकी सहमति नहीं ली थी। सवाल ये कि शकुंतलम को बिक्री प्रमाण पत्र किसने जारी किया, जब इस मामले में स्टे हो चुका था तो यूपीसीडा ने आवंटन को कैसे रद्द कर दिया?

कोर्ट में क्या दी गई दलील

शकुंतलम कंपनी की तरफ से याचिका दाखिल की गई। जिसमें ये दलील दी गई कि नीलामी के पक्ष में 362 करोड़ पहले से ही चुकाया जा चुका है। जबकि इस मामले में यूपीसीडा की तरफ से हलफनामा दाखिल करने के लिए कोर्ट से समय मांगा गया, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया है। तथ्यों और प्रस्तुत किए गए प्रस्तुतीकरण को ध्यान में रखते हुए, कोर्ट ने कहा कि यूपीसीडा द्वारा विवादित भूमि पर किसी तीसरे पक्ष का अधिकार नहीं बनाया जाएगा। सवाल ये कि पहले नियमों को ताक पर रखकर जमीन शकुंतलम कंपनी को बेची गई, अब जब यूपीसीडा भी इस मामले में घिरी तो कार्रवाई की जा रही है। सवाल ये भी है कि क्या शकुंतलम और यूपीसीडा की ये कोई मिलीभगत तो नहीं, जो लोगों को कन्फ्यूज करने के लिए गेम प्लान किया जा रहा है। ये बात अब इसलिए बोली जा रही है क्योंकि कोर्ट में यूपीसीडा की तरफ से लचर पैरवी की गई और सरकार के सामने ये नाटक किया गया कि जमीन वापस लेने के लिए कोर्ट में केस अथॉरिटी लड़ रही है। जबकि जिस तरह से यूपीसीडा को कोर्ट में पैरवी करनी थी, उस तरह से नहीं किया गया। जिसका नतीजा ये हुआ कि सरकार को इस मामले में भारी राजस्व का नुकसान उठाना पड़ा।

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