भारतीय दल को पेरिस ओलंपिक में पहला मेडल भारतीय निशानेबाज मनु भाकर ने दिलाया। अपने दूसरे ओलंपिक में मनु भाकर ने ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम किया है।

कोरिया को पछाड़कर जीताया भारत को मेडल

मनु भाकर ओलंपिक मेडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला शूटर बन गई हैं। मनु ने 10 मीटर एयर पिस्टल में ये कारनामा सिर्फ 22 साल में किया है। मनु भाकर ने 221.7 पॉइंट्स के साथ नंबर तीन पर फ़िनिश किया। कोरिया की ओह ये जिन ने 243.2 का ओलंपिक्स रिकॉर्ड बनाते हुए गोल्ड मेडल जीता। जबकि उन्हीं के देश की येजि किम ने 241.3 के स्कोर के साथ सिल्वर मेडल अपने नाम किया।

कौन हैं मनु भाकर?

मनु भाकर का ये दूसरा ओलंपिक है। टोक्यो ओलंपिक 2020 में मनु भाकर ने डेब्यू किया था, लेकिन 10 मीटर एयर पिस्टल क्वालिफिकेशन राउंड के दौरान उनकी पिस्टल खराब हो गई थी। जिसकी वजह से वो मेडल नहीं जीत सकी थीं। मनु भाकर ने साल 2023 एशियन शूटिंग चैम्पियनशिप में महिलाओं की 25 मीटर पिस्टल स्पर्धा में पांचवें स्थान पर रहने के बाद भारत के लिए पेरिस 2024 ओलंपिक कोटा हासिल किया था। मनु भाकर ISSF वर्ल्ड कप में गोल्ड मेडल जीतने वाली सबसे कम उम्र की भारतीय हैं। वो गोल्ड कोस्ट 2018 में महिलाओं की 10 मीटर एयर पिस्टल स्पर्धा में कॉमनवेल्थ गेम्स की चैम्पियन भी हैं, जहां उन्होंने CWG रिकॉर्ड के साथ शीर्ष पदक जीता था। मनु भाकर ब्यूनस आयर्स 2018 में यूथ ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय निशानेबाज और देश की पहली महिला एथलीट भी हैं। उन्होंने पिछले साल एशियाई खेलों में महिलाओं की 25 मीटर टीम पिस्टल का खिताब जीता था।

बॉक्सिंग को छोड़ चुनी निशानेबाजी

हरियाणा के झज्जर में जन्मीं मनु भाकर ने स्कूल के दिनों में टेनिस, स्केटिंग और मुक्केबाजी मुकाबलों में हिस्सा लिया। इसके अलावा उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतने वाली ‘थान टा’ नामक एक मार्शल आर्ट में भी भाग लिया। मुक्केबाजी के दौरान मनु के आंख पर चोट लग गई। जिसके बाद उनका बॉक्सिंग में सफर खत्म गया। जिसके बाद उन्होंने निशानेबाजी में करियर बनाया और आज भारत को पहला गोल्ड जीताया। मनु भाकर ने सिर्फ 14 साल की उम्र में शूटिंग में अपना करियर बनाने का फैसला किया, उस वक्त रियो ओलंपिक 2016 खत्म ही हुआ था। इसके एक हफ्ते के अंदर ही उन्होंने अपने पिता से शूटिंग पिस्टल लाने को कहा। उनके हमेशा साथ देने वाले पिता राम किशन भाकर ने उन्हें एक बंदूक खरीदकर दी और वो एक ऐसा फैसला था जिसने एक दिन मनु भाकर को ओलंपियन बना दिया।

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