लोकसभा चुनावों के नतीजे घोषित हो चुके हैं। बीजेपी के लिए ये नतीजे निराशाजनक साबित हुए हैं। जहां बीजेपी 400 पार का नारा देते नहीं थक रही थी तो वहीं पार्टी इस बार 300 का आंकड़ा भी पार नहीं कर पाई है। अगर हम ये कहें कि बीजेपी औंधे मुंह गिरी है तो ये गलत नहीं होगा। वहीं नतीजों की घोषणा के बाद अब सत्ता किसकी चलेगी इस बात की ऊहापोह शुरू हो गई है। लोकसभा चुनाव 2024 में एनडीए को 292 सीटें मिली हैं। लगातार तीसरी बार एनडीए की सरकार तो बनने जा रही है लेकिन बीजेपी बहुमत से दूर है। इसलिए एनडीए की सरकार पांच साल चलाने के लिए अब प्रधानमंत्री मोदी को चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी और नीतीश कुमार की जेडीयू के साथ की जरूरत होगी। वो इसलिए क्योंकि 2014 और 2019 में अपने दम पर बहुमत लाने वाली बीजेपी इस बार 272 का आंकड़ा पार नहीं कर सकी। 543 सीटों वाली लोकसभा में सरकार में बने रहने के लिए कम से कम 272 सीटें चाहिए। बीजेपी के पास इस बार 240 सीटें ही हैं। हालांकि, एनडीए के पास 292 सीटें हैं, जो बहुमत से 20 ज्यादा है।

नीतीश-मोदी की उतार-चढ़ाव वाली यारी
नीतीश और मोदी के रिश्तों की बात करें तो दोनों ही नेताओं के रिश्ते काफी उतार-चढ़ाव भरे रहे हैं। 2014 का लोकसभा चुनाव नीतीश ने अकेले लड़ा। इससे नीतीश की जेडीयू को खासा नुकसान पहुंचा। हार की जिम्मेदारी लेते हुए नीतीश ने मई 2014 में मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद 2015 का विधानसभा चुनाव उन्होंने लालू यादव की आरजेडी के साथ मिलकर लड़ा था। नीतीश-लालू की जोड़ी चल पड़ी और बिहार मे जेडीयू-आरजेडी की सरकार बनी। लेकिन दो साल बाद ही जुलाई 2017 में नीतीश पलटी मारते हुए दोबारा एनडीए में आ गए। एनडीए में आने के बाद 2019 का लोकसभा और 2020 का विधानसभा चुनाव उन्होंने बीजेपी के साथ मिलकर लड़ा। 2020 में बिहार में एनडीए की सरकार बनी, लेकिन फिर अगस्त 2022 में उन्होंने पलटी मारी और आरजेडी के साथ मिलकर सरकार बनाई। इसी साल जनवरी में नीतीश कुमार ने यूटर्न लेते हुए आरजेडी का साथ छोड़ा और फिर एनडीए में आ गए।

मोदी-नायडू की दोस्ती का तानाबाना
2018 तक नायडू की टीडीपी एनडीए का हिस्सा थी। एनडीए से अलग होने के बाद नायडू की टीडीपी ने मार्च 2018 में मोदी सरकार के खिलाफ संसद में अविश्वास प्रस्ताव भी पेश किया था। हालांकि, ये प्रस्ताव गिर गया था। 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान मोदी और नायडू के बीच कई बार तीखी बयानबाजी भी हुई थी। गठबंधन से अलग होने के कारण पीएम मोदी ने नायडू को ‘यूटर्न बाबू’ कहा था। हालांकि, 2019 के लोकसभा और आंध्र विधानसभा चुनाव में हार के बाद नायडू ने कई बार कथित रूप से एनडीए में शामिल होने की कोशिश की थी। माना जाता है कि नायडू ने जो कुछ भी बयानबाजी की थी, उसे लेकर मोदी टीडीपी को एनडीए में लाना नहीं चाहते थे। लेकिन एक्टर से राजनेता बने पवन कल्याण मोदी और नायडू को करीब लेकर आए। आखिरकार चुनाव से ऐन पहले मार्च में टीडीपी एनडीए में शामिल हो गई।

मोदी के लिए जरूरी है नायडू-नीतीश का साथ
सरकार में बने रहने के लिए 272 सीटें जरूरी हैं। बीजेपी की 240, टीडीपी की 16 और जेडीयू की 12 सीटें मिलाकर 268 का आंकड़ा पहुंचता है। बाकी 24 सीटें दूसरी पार्टियों की हैं। अगर एक भी पार्टी साथ छोड़ती है तो एनडीए के पास बहुमत तो रहेगा, लेकिन सरकार कमजोर हो जाएगी। अगर टीडीपी साथ छोड़ती है तो एनडीए के पास 276 सांसद बचेंगे। सरकार बहुमत में तो रहेगी,लेकिन जादुई आंकड़े से कुछ सीटें ही ज्यादा बचेंगी। इसी तरह अगर नीतीश की जेडीयू अलग होती है तो एनडीए के पास 280 सीटें बचेंगी। ऐसी स्थिति में भी एनडीए के पास ही बहुमत रहेगा, लेकिन सरकार कमजोर और विपक्ष और मजबूत हो जाएगा। वहीं अगर दोनों पार्टियां साथ छोड़ देती हैं तो एनडीए सरकार बहुमत खो देगी। टीडीपी और जेडीयू के पास 28 सांसद हैं और दोनों के जाने का मतलब होगा। एनडीए के पास 264 सीटें बचना। यानी, बहुमत से चार सीटें कम। बहरहाल, नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है।

Share.
Leave A Reply

Exit mobile version