13 जनवरी से महाकुंभ का आगाज होने जा रहा है. साधुओं की बात करें तो नागा साधुओं का काफी महत्व होता है. कहा जाता है कि नागा साधु भगवान शिव का ही रूप होते हैं. ऐसे ही एक नागा साधु हैं श्री पंत नाम जूना अखाड़ा का नागा संत अर्जुन पुरी जी. जिन्होंने नाऊ नोएडा की टीम से बातचीत की

सात अखाड़ों में 10 उपाधियां दी गई हैं- अर्जुन पुरी
श्री पंत नाम जूना अखाड़ा का नागा संत अर्जुन पुरी ने बताया कि सन्यासी हूं और गुरु पीरों का दिया हुआ, संत संतों का दिया हुआ, श्री गुरु महाराज का दिया हुआ, मेरा छोटा सा नाम है नागा संत अर्जुन पुरी. पुरी मेरी उपाधि है. मेरी और आद गुरु भगवान शंकराचार्य के द्वारा हम लोगों का द नाम में बंटवारा किया गया है. 10 उपाधियां दी गई हैं और सात अखाड़ों में 10 उपाधियां दी गई हैं. गिरी साधु जो है पहाड़ों में जाकर के सनातन को सनातन संस्कृति को धर्म ध्वजा को मजबूत करें, सशक्त करें. पुरी बड़े-बड़े पुरियों में अयोध्या, मथुरा, माया, काशी, काजी, अवंतिका पुरी द्वारा देवती और सतत मोक्ष दायका इन पुरियों में हों. धर्म को सशक्त करें धर्म का ध सशक्त कर मजबूत अखाड़े और धर्म का प्रचार प्रसार करें. पर्वत साधु जो है हमारे जिनको पर्वत की उपाधि मिली. वह हल्के पर्वती इलाका जैसे हिमाचल जैसा है, अन्य ऐसे पर्वतीय इलाके जो हैं. वहां जाकर के सनातन संस्कृति को बढ़ावा दे, प्रचार प्रसार करें और अपने धर्म धव्जा को मजबूत करें, सनातन को सशक्त बनाएं. इस तरीके से हमें द नामों में बांटा गया है. सागर जो साधु सागर उपाधि वाले हैं. उस सागर के त इलाकों में जाकर के वहां हमारे सनातन संस्कृति को मजबूत बनाएं. उसका प्रचार प्रसार करें और वन साधु होते हैं. अरण्य होते हैं. तो अरण्य मतलब घोर जंगल. घोर जंगल में जाकर के वहां के आदिवासी और जितनी पिछड़ा वर्ग है. उसको सनातन संस्कृति के बारे में जानकारी दें. सनातन संस्कृति को मजबूत बनाएं. वहां भगवान का धर्म का सत्य का प्रचार प्रसार करें. इस तरीके से वन साधु होते हैं. वो वनों में जाकर के वनों में रहने वाली जो हमारी प्रजा है. जो भी वन में रहने वाले आदिवासी और कोल भिल्ल लोग हैं. उनमें जाकर के धर्म का प्रचार प्रसार करें. सनातन संस्कृति को बताएं और सनातन संस्कृति का प्रचार प्रसार करके उस सनातन धव्जा को मजबूत करें. इस तरीके से हमारी दस उपाधियां हमारे आदि गुरु भगवान के द्वारा अलग-अलग बांटी गई हैं कि तुम लोग इस तरीके से पूरे भारत में फैल जाओ और विश्व में फैल जाओ और सनातन संस्कृति और सनातन ध्वजा जो है उसको गाड़ दो.

सनातन संस्कृति का प्रचार-प्रसार करो- अर्जुन पुरी
नागा संत अर्जुन पुरी ने कहा कि सनातन संस्कृति का प्रचार प्रसार करो. सारे विश्व को सनातनी बना दो. क्योंकि विश्व जो है हमारा पहले से ही सनातनी है. एक ही धर्म था पहले सनातन धर्म. सनातन का मतलब जिसका आदि अंत ही नहीं है और जितने भी धर्म अभी बना लिए हैं. यह सिख, ईसाई, मुगल, मुस्लिम यह धर्म पहले नहीं थे. एक ही मात्र धर्म था सनातन धर्म. सनातन धर्म अत्यंत पवित्र और शुद्ध होने के कारण इसमें अगर किसी ने बुराई की तो उसको निकाल के बाहर कर दिया गया. तो वह ज्यादा बुराई करने वाले बढ़ गए. तो धीरे-धीरे अपना एक दल बना लिया, एक अपना धर्म बना लिया. वही आज धर्म चल रहे हैं. जो अलग धर्म बना लिए हैं. बाकी एक ही मात्र हमारा धर्म था सनातन हिंदू धर्म. सनातन धर्म सनातनी संस्कृति जितना भी धर्म है. वह सब हमारी सनातन संस्कृति से फैला हुआ है और सनातन श्रेष्ठ है, सदैव से है, सदैव से चला आ रहा है और चलता रहेगा, सदैव बना रहेगा. हम सब धर्म बीच में बने हैं और बीच में ही विलुप्त होकर सनातन में फिर मिल जाएंगे. मात्र एक संस्कृति रहेगी सनातन संस्कृति और हम लोग सनातन के ध्वजवाहक है. सनातन के सिपाही हैं. हमें सनातन को सशक्त मजबूत बनाने के लिए ही यह बता दिया गया है. शस्त्र और शास्त्र दोनों दिए गए .हैं यह हमारा सनातन धर्म नागा साधुओं की जब आप बात करते हैं. ना तो साधु के बारे में तो हर कोई जानता है. यह भी जानते हैं कि भगवान शिव का रूप इन लोगों को बोला जाता है.

“नागा सन्यासी जो हैं, धर्म के सिपाही हैं”
नागा संत अर्जुन पुरी ने कहा कि नागा सन्यासी जो हैं, धर्म के सिपाही हैं. हम लोग सनातन के अगर हमारे सनातन पर कोई चोट आती हैं. तो वह सीधे हमारे हृदय पर हृदयाघात होता है और नागा साधु का मतलब यह है कि हम लोग चित्त से जैसे शरीर से नग्न रहते हैं ऐसे हमारे चित्त में भी हृदय के अंदर भी कोई विकार, वासना, कोई लालसा, कोई इच्छा, कोई कामना नहीं रहती है. हमारा हृदय आकाश की तरह स्वच्छ और गंगा की तरह पवित्र और निर्मल रहता है. मक्खन की तरह कोमल रहता है. इसलिए हम शरीर से नंगे हैं. चित्त से भी नंगे हैं और सनातन के लिए हम मर मिट जाने वाले सिपाही हैं. सनातन धर्म जो है हमारा बलिदान हो जाए या बलिदान लेना पड़े या देना पड़े. दोनों के लिए हम अग्र रहते हैं. किसी भी तरीके से हम सनातन पर कोई भी चोट बर्दाश्त नहीं करेंगे. हम सनातन को खतरे में नहीं जाने देंगे.

“नागा संत बचपन से ही संत बनाए जाते हैं”
नागा संत अर्जुन पुरी ने कहा कि नागा संत बचपन से ही संत बनाए जाते हैं. जन्म से ही कोई अपना बालक दान में दे देता है या उसको हम लोग मांग लेते हैं. तो बच्चा छोटा हमें मिलता है. तो हम उसको संपूर्ण नागा साधु बनाते हैं. बाकी बीच में कोई आ जाते हैं. तो उनको हम पूर्ण का साधु नहीं बनाते हैं. उनको हम ऐसे ही रख लेते हैं. शस्त्र की भी ट्रेनिंग मिलती है, भाला चलाने की, त्रिशूल चलाने की, तलवार चलाने की, फरसा चलाने की और यहां तक कि अगर धर्म पर कोई आंच आए तो बंदूक भी चलाने की ट्रेनिंग है, हमारे पास. हम बंदूक भी चलाएंगे और बार-बार अगर धर्म पर सनातन पर आघात हुआ. ऋषियों ने विचार किया, क्या किया जाए तो सागर मंथन कराया. गगर मंत्र से अमृत निकला, तो उस अमृत को देवताओं को पिलाना था. जिससे देवता अमर हो जाए और वह मरे नहीं. क्योंकि उनकी कम संख्या थी, राक्षस बहुत थे, बाहुल्य था. उनका तो राक्षसों को खत्म करने के लिए सागर मंथन करके अमृत निकाला गया. वह अमृत द्वैत लेकर भागा और अमृत का कलश लेकर भागा. तो जहां-जहां अमृत गिरा हुआ है. चार जगह पर अमृत फैला हुआ है, उस कलश से. तो वहां पर ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सब घड़ी नक्षत्र मिलाकर के पवित्र समय आता है. इस समय स्नान करने से लोगों को अमृत प्राप्त हो जाता है. फिर उनका आवागमन का चक्कर मिट जाता है. सांसारिक दुखों में बार-बार उनको नहीं आना पड़ता. सांसारिक दुख नहीं झेलने पड़ते हैं. यह सब होता है. 144 साल बाद यह इस बार संयोग बना है. शायद हमारे दादा भी ऐसे कुंभ में नहीं आए होंगे. हम लोग को यह सौभाग्य की प्राप्ति हुई है कि इस कुंभ में हम लोग आ सके.

“सनातनी लोग कुंभ में आकर लाभ के भागी बनें”
नागा संत अर्जुन पुरी ने कहा कि हम अपने सनातनी लोगों को संदेश देना चाहते हैं कि सभी सनातन के सिपाही बन जाएं. सनातन पर अगर कोई आंच आए, तो बर्दाश्त ना करें. घर में ना घुसे, बराबर लड़ाई झगड़ा करें और दूसरे धर्म को काट के उसको धरती में दफन कर दें. यह संदेश दे रहा हूं, सनातनी लोग कुंभ मेले में ज्यादा से ज्यादा संख्या में पधार कर इस लाभ के जो है भागी बने जो इतना महत्व है, उपलब्धियां है. इसलिए ज्यादा से ज्यादा सनातनी कुंभ मेले में पधारे और दिखाए दूसरे धर्म वालों को कि हम कितने अपने धर्म को चाहने वाले हैं. धर्म के लिए मर जाना, मिट जाना, मार देना, यह सब हम सनातनियों के खून में बसा हुआ है.

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