नवरात्रि की शुरुआत 3 अक्टूबर से हो चुकी है, पहले दिन घरों से लेकर मंदिरों तक नवरात्रि की धूम देखने को मिली। अब 4 अक्तूबर यानी कि शुक्रवार को नवरात्रि का दूसरा दिन है। दूसरे दिन मां दुर्गा के दूसरे स्वरूप मां ब्रह्मचारिणी की पूजा होती है।

कौन हैं मां ब्रह्मचारिणी

पौराणिक मान्यताओं कहती है कि मां ब्रह्मचारिणी पर्वतराज हिमालय के घर जन्मी थी। उन्होंने भगवान शंकर को पति के रूप में पाने किए नारद जी की सलाह पर माता ने कठोर तप किया था। तपस्या के कारण ही इनका नाम ब्रह्मचारिणी रखा गया था। कहा जाता है कि 1000 सालों तक इन्होंने फल और फूल खाकर अपना समय व्यतीत किया और 100 साल तक जमीन पर रहकर तपस्या की।

भक्तों को पहनने चाहिए सफेद कपड़े

मां ब्रह्मचारिणी असल में मां पार्वती की अविवाहित रूप हैं। मां ब्रह्मचारिणी शांत और संतोषी कही जाती हैं। वो तपस्विनी हैं जो भगवान शिव की तपस्या में लगी हुई हैं। उनके एक हाथ में रुद्राक्ष माला तो दूसरे में कमंडल है। वो सफेद कपड़े धारण करती हैं। दूसरे दिन भक्तों को भी मां ब्रह्मचारिणी के पसंदीदा रंग यानी सफेद रंग पहनना चाहिए।

मां ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि

मान्यताओं के मुताबिक, मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने के लिए स्नान के बाद सफेद कपड़े पहनें। घर में मौजूद मां की प्रतिमा में मां ब्रह्मचारिणी का स्वरूप स्मरण करें। मां ब्रह्मचारिणी को पंचामृत से स्नान कराएं। मां ब्रह्मचारिणी को सफेद या पीले वस्त्र अर्पित करें। इसके बाद मां ब्रह्मचारिणी को रोली, अक्षत, चंदन आदि चढ़ाएं।

माता को पसंद हैं लाल फूल

मां ब्रह्मचारिणी सफेद वस्त्र धारण करती हैं, लेकिन उनका पसंदीदा रंग लाल माना जाता है। मां ब्रह्मचारिणी की पूजा में गुड़हल या लाल रंग के फूल का ही प्रयोग करें और मंत्रों का जाप करें। मां ब्रह्मचारिणी की आरती उतारें और भोग लगाएं।

खास है पंचामृत का भोग

मां दुर्गा के दूसरे स्वरूप मां ब्रह्मचारिणी को दूध, चीनी और पंचामृत का भोग लगाना काफी शुभ बताया गया है। आप भी खुद पंचामृत बनाकर माता रानी को इसका भोग लगा सकते हैं, इससे आपकी हर मनोकामना पूरी होगी। आपको बता दें, पंचामृत एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ होता है ‘पांच अमृत’। पंचामृत का उपयोग हिंदू धर्म में पूजा-पाठ और धार्मिक अनुष्ठानों में किया जाता है। ये खासतौर दूध, दही, घी, शहद और शक्कर से मिलाकर बनाया जाता है। पंचामृत पूजा में माता रानी को अर्पित करें और बाद में इसे प्रसाद के रूप में वितरित करना चाहिए।

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