लोकसभा चुनाव 2024 के पहले चरण में 102 सीटों पर वोटिंग होगी. राजनीतिक पार्टियों ने चुनावी मैदान में अपने-अपने उम्मीदवार उतार दिए हैं. अब इनकी किस्मत का फैसला 19 अप्रैल को वोटिंग में होगा. जिसमें अब कुछ ही दिन बचे हैं। लेकिन अगर किसी वोटर को अपने निर्वाचन क्षेत्र से खड़े सभी कैंडिडेट्स में से कोई भी ठीक न लगे? तो ऐसे वोटर्स के लिए चुनाव आयोग नोटा (NOTA) का विकल्प लेकर आया था. आइए समझते हैं कि चुनावों में NOTA का क्या रोल होता है और अगर सबसे ज्यादा वोट NOTA को पड़ते हैं तो क्या होता है.

NOTA का मतलब क्या है
NOTA का मतलब है None of the above यानी ‘उपरोक्त में से कोई नहीं’. EVM मशीन का इस्तेमाल तो काफी पहले से हो रहा है, लेकिन उसमें NOTA का बटन पिछले दशक से ही शामिल हुआ है. पहली बार 2013 में 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों में नोटा को पेश किया गया था. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद 2013 से ही सभी चुनावों में वोटर्स को नोटा का विकल्प दिया जाने लगा. यह बटन EVM में सबसे आखिर में होता है.लोकतंत्र में नागरिकों का बड़ी संख्या में चुनावी प्रक्रिया में हिस्सा लेना जरूरी होता है. यह एक सजीव लोकतंत्र का प्रतीक होता है. लेकिन क्या होगा अगर वोटर को कोई भी उम्मीदवार योग्य न लगें? इसी बात को ध्यान में रखते हुए चुनाव आयोग ने एक ऐसा तंत्र विकसित किया जिससे यह दर्ज हो सके कि कितने फीसदी लोगों ने किसी को भी वोट देना उचित नहीं समझा है. आयोग ने इसे NOTA नाम दिया.

इस विकल्प से वोटर अपनी नापसंदगी जाहिर कर सकता
नोटा से आम जनता की चुनाव में राजनीतिक भागीदारी बढ़ती है. इस विकल्प से वोटर अपनी नापसंदगी जाहिर कर सकता है. इससे पार्टियों को भी मैसेज मिलता है कि उनके द्वारा खड़े किए गए उम्मीदवारों को लोग स्वीकार नहीं करते हैं और उन्हें बेहतर कैंडिडेट उतारने की जरूरत है. नोटा से पहले तक अगर वोटर को कोई भी उम्मीदवार योग्य नहीं लगता था, तो वो वोट ही नहीं करता था. इससे उनका वोट जाया हो जाता था.

नोटा के नियमों में समय-समय पर हुए बदलाव
नोटा के नियमों में समय-समय पर बदलाव हुए हैं. शुरूआत में नोटा को अवैध वोट माना जाता था. यानी कि अगर NOTA को बाकी सभी उम्मीदवारों से ज्यादा वोट मिलते हैं, तो दूसरे सबसे ज्यादा वोट पाने वाले उम्मीदवार को विजेता घोषित कर दिया जाता था. आखिरकार, 2018 में देश में पहली बार नोटा को भी उम्मीदवारों के बराबर का दर्जा दिया गया. दरअसल, दिसंबर 2018 में हरियाणा के पांच जिलों में हुए नगर निगम चुनावों में NOTA को सबसे ज्यादा वोट मिले थे. ऐसे में सभी उम्मीदवारों को अयोग्य घोषित कर दिया गया. इसके बाद चुनाव आयोग ने दोबारा चुनाव कराने का फैसला किया.


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