Greater Noida: नवरात्र के समापन में देशभर में दशहरा मनाने की तैयारी चल रही है। जगह-जगह रावण के बड़े पुतले दहन के लिए बनाए गए हैं। नोएडा और ग्रेटर नोएडा में भी दशहरा पर रावण दहन की तैयारी है। जहां पूरे देश में दशहरे पर रावण का पुतला जलाकर अधर्म का लोग जीत मनाते हैं, वहीं ग्रेटर नोएडा में एक एसा गांव है, जहां रावण का पुतला दहन नहीं होता बल्कि पूजा होती है। बिसरख गांव में यह परंपरा आज भी निभाई जा रही है।


रावण के पिता के नाम पर पड़ा है गांव का नाम


उल्लेखनीय है कि बिसरख गांव का जिक्र शिवपुराण में किया गया है। माना जाता है कि बिसरख गांव में विश्रवा ऋषि के यहां रावण का जन्म हुआ था। विश्रवा ऋषि ने गांव में एक अष्टभुजी शिवलिंग की स्थापना की, जो आज भी विराजमान है। कहा जाता है रावण के पिता का नाम विश्वश्रवा था, जो बाद में परिवर्तित होकर गांव का नाम बिसरख पड़ा. गांव में स्थापित शिव मंदिर में रावण पूजा करता था। बिसरख शिव मंदिर में पूजा करने के बाद रावण गुफा मार्ग से गाजियाबाद के दुग्देश्वर मंदिर में पूजा करने प्रतिदिन जाया करता था. जिस शिव लिंग की पूजा रावण किया करता था।

अपने पूर्वज का कैसे पुतला जलाएं?

आज भी बिसरख गांव में दशहरे पर लोग राम की नहीं बल्कि रावण पूजा करते है। बिसरख के रहने वालों का कहना है कि रावण उनके पूर्वज है, तो दशहरा पर वो अपने पूर्वज का पुतला कैसे जला सकते हैं। लोगों का कहना है कि इस गांव का नाम रावण के पिता और एक प्रसिद्ध ऋषि विश्रवास के नाम पर है। इसके अलावा गांव के लोगों का ये भी मानना है कि अगर दशहरे पर रावण का पुतला जलाया तो उनपर रावण और शिव का क्रोध भड़क जाएगा। क्योंकि रावण भगवान शिव का परम भक्त था। गांव के बीचों- बीच भगवान शिव का एक मंदिर भी है, मंदिर का नाम बिसरख रावण मंदिर है।

रावण के दादा ने की थी शिवलिंग की स्थापना

मंदिर के पुजारी ने बताया कि मंदिर में जिस शिवलिंग की पूजा की जाती है, उसकी स्थापना रावण के दादा पुलस्त्य ने की थी। स्थापना के बाद से उनकी पीढ़ी दर पीढ़ी ने इस शिवलिंग की पूजा की थी। पुलस्त्य के बाद उनके बेटे विश्वासवा ने की और विश्वासवा के बाद रावण और कुंभकरण ने इस मंदिर में शिव की पूजा की। लोगों का तो ये भी मानना है कि रावण ने इसी मंदिर में वर्षों की पूजा करने के बाद चमत्कारी शक्तियां प्राप्त कीं।

गांव में 7 दशक से नहीं हुई रामलीला

इस गांव का एक और महत्वपूर्ण तथ्य है कि यहां सात दशक से रामलीला का मंचन नहीं हुआ है। कहा जाता है कि काफी समय पहले गांव में रामलीला का आयोजन किया गया था। उस दौरान गांव में एक व्यक्ति की मौत हो गई। जिसके चलते रामलीला अधूरी रह गई। इसके बाद एक बार फिर गांव के लोगों ने रामलीला का मंचन कराया, लेकिन उस बार भी पूरी नहीं हो सकी। अनहोनी के चलते तभी से गांव में रामलीला व पुतले का दहन नहीं किया जाता है।

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