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New Delhi: जाति जनगणना और जाति सर्वेक्षण में क्या है अंतर? आंकड़ों और अधिकारों की जंग, यहां पढ़ें पूरा अपडेट

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नई दिल्ली – केंद्र सरकार की घोषणा के बाद एक बार फिर जाति जनगणना चर्चा के केंद्र में है। लेकिन इससे पहले कि इस प्रक्रिया को समझा जाए, जरूरी है कि जाति जनगणना और जाति सर्वेक्षण के बीच के फर्क को साफ किया जाए। नाम मिलते-जुलते जरूर हैं, लेकिन दोनों के स्वरूप, कानूनी स्थिति और प्रभाव में बड़ा अंतर है।

क्या है जाति जनगणना और जाति सर्वेक्षण में अंतर?

जाति जनगणना केंद्र सरकार द्वारा कराई जाती है और इसका संचालन Census Act 1948 के तहत होता है। यह एक कानूनी और राष्ट्रीय प्रक्रिया है, जिसमें हर नागरिक की जानकारी गोपनीय रखी जाती है। दूसरी ओर, जाति सर्वे राज्य सरकारें कराती हैं, जिनका उद्देश्य नीति निर्माण और सामाजिक योजना तैयार करना होता है। ये सर्वे सेंसस एक्ट के तहत नहीं आते, इसलिए इनका कानूनी दर्जा सीमित होता है।

जाति जनगणना पूरे देश में होती है, जबकि जाति सर्वेक्षण राज्य या क्षेत्र विशेष तक सीमित रहते हैं। जनगणना का डाटा आमतौर पर सार्वजनिक नहीं किया जाता, लेकिन जाति सर्वेक्षण का डाटा राज्य सरकार की नीति के अनुसार जारी किया जा सकता है।

बिहार का जातीय सर्वे (2023)

बिहार सरकार ने अक्टूबर 2023 में जातीय सर्वेक्षण के आंकड़े जारी किए। इसमें राज्य की 13 करोड़ आबादी को 214 जातियों में बांटा गया। सर्वे के अनुसार, OBC (BC+EBC) वर्ग की जनसंख्या 63.14% है। केवल 6.47% लोग ग्रेजुएट हैं, जिसमें सामान्य वर्ग के 14.54%, EBC के 4.44%, SC के 3.12% और ST के 3.53% लोग शामिल हैं। यह सर्वे राज्य में सामाजिक और आर्थिक असमानता को उजागर करता है।

कर्नाटक का जातीय सर्वे (2014)

कर्नाटक में सिद्धारमैया सरकार ने 2014 में "सामाजिक एवं आर्थिक सर्वे" कराया था, लेकिन इसे कभी आधिकारिक रूप से सार्वजनिक नहीं किया गया। रिपोर्ट के कुछ हिस्सों से पता चला कि ओबीसी की संख्या अपेक्षा से अधिक थी, जबकि लिंगायत और वोक्कालिंगा जैसे प्रमुख समुदायों की संख्या में गिरावट दर्ज की गई। इसके बाद राज्य में कोई नया जातीय सर्वे नहीं हुआ।

तेलंगाना का जातीय सर्वे (2025)

फरवरी 2025 में तेलंगाना सरकार द्वारा कराए गए जातीय सर्वे में राज्य की आबादी 3.70 करोड़ बताई गई। आंकड़ों के अनुसार, गैर-मुस्लिम पिछड़ा वर्ग 46.25%, अनुसूचित जाति 17.43%, अनुसूचित जनजाति 10.45%, मुस्लिम पिछड़ा वर्ग 10.08% और अन्य जातियां 13.31% हिस्सेदारी रखती हैं।

जाति जनगणना और जाति सर्वे दोनों के उद्देश्य समान—सामाजिक न्याय और नीति निर्माण—हो सकते हैं, लेकिन इनके तरीके, वैधानिक स्थिति और प्रभाव अलग हैं। केंद्र की ओर से जाति जनगणना की घोषणा के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि अब देश जातिगत संरचना को लेकर एक नई बहस की ओर बढ़ रहा है—जहां आंकड़े केवल आंकड़े नहीं होंगे, बल्कि हक और हिस्सेदारी की बुनियाद बनेंगे।

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