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Mughal दरबार की थाली से ढाबों तक, भारतीय खाने में कैसे शामिल हुई रुमाली रोटी

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रुमाली रोटी का नाम सुनते ही एक पतली, मुलायम और कपड़े जैसी रोटी की तस्वीर आंखों के सामने आ जाती है, जिसे कबाब, बटर चिकन या मटन करी के साथ बड़े चाव से खाया जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि यह रोटी भारतीय खाने का हिस्सा कैसे बनी? आइए जानते हैं इस शाही रोटी की दिलचस्प कहानी।

मुगल दरबार से हुई शुरुआत

रुमाली रोटी की शुरुआत मुगल काल से मानी जाती है। जब मुगल भारत आए, तो उनके साथ उनकी समृद्ध खानपान संस्कृति भी आई। रुमाली रोटी उस समय शाही भोज का हिस्सा थी और इसे बड़े चाव से खाया जाता था। खास बात यह है कि इस रोटी का नाम इसके बनावट से जुड़ा है—यह इतनी पतली होती है कि किसी रूमाल की तरह दिखती है, इसलिए इसे "रुमाली" कहा गया। कई जगहों पर इसे “लंबू रोटी” या “मांडा” के नाम से भी जाना जाता है।

इतिहास में एक दिलचस्प किस्सा यह भी है कि मुगल दरबारों में रुमाली रोटी का इस्तेमाल खाने के बाद हाथ पोंछने या खाने से अतिरिक्त तेल सोखने के लिए नैपकिन की तरह किया जाता था। लेकिन समय के साथ यह रोटी खाने योग्य बन गई और फिर शाही रसोई का अहम हिस्सा बन गई।

शाही से आम लोगों तक पहुंची रोटी

मुगल साम्राज्य के पतन के बाद भी रुमाली रोटी की लोकप्रियता कम नहीं हुई। दिल्ली, लखनऊ और हैदराबाद जैसे शहरों में यह रोटी शाही व्यंजनों के साथ आम हो गई। धीरे-धीरे रुमाली रोटी पाकिस्तान और अन्य दक्षिण एशियाई देशों में भी फैल गई।

1990 के दशक में रुमाली रोटी ने एक नया मोड़ लिया जब यह शादी-ब्याह की पार्टियों, ढाबों और रेस्तरां के मेन्यू का हिस्सा बन गई। आज यह खास मौकों और दावतों की शान बन चुकी है, खासकर केबाब, कश्मीरी या अवधी करी और बिरयानी जैसे व्यंजनों के साथ।

बनाने में है खास हुनर

रुमाली रोटी बनाना एक कला है। इसे बनाने के लिए आटा, मैदा, नमक और थोड़ी सी मात्रा में तेल मिलाकर गूंथा जाता है। गूंथे हुए आटे को गीले कपड़े में ढककर कुछ समय के लिए रख दिया जाता है, जिससे वह मुलायम हो जाए। फिर इस आटे की छोटी-छोटी लोइयां बनाकर बहुत पतली और बड़ी शीट में बेल लिया जाता है और रोटी को तवे पर सिका जाता है। इसे दोनों तरफ से अच्छे से सेंका जाता है ताकि यह बिल्कुल मुलायम और स्वादिष्ट बने।

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