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Greater Noida: यूनिवर्सिटी ने चूसा इस गांव का पानी, हैंडपंप हुए खामोश, जल संकट पर फूटा ग्रामीणों का गुस्सा

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ग्रेटर नोएडा के रबूपुरा क्षेत्र के ग्रामीणों और किसान संगठनों में इन दिनों गहरी नाराज़गी है। जिसकी वजह है एक निर्माणाधीन निजी विश्वविद्यालय, जिस पर पानी के अत्यधिक दोहन का गंभीर आरोप लगाया गया है। ग्रामीणों का कहना है कि बीते छह महीनों से लगातार हो रहे जल दोहन के कारण आसपास के गांवों में पानी का स्तर तेजी से गिर रहा है, जिससे हैंडपंपों ने काम करना तक बंद कर दिया है।

निजी विश्वविद्यालय द्वारा भारी मात्रा में बोरिंग कर निकाला जा रहा पानी 

दरअसल यह विश्वविद्यालय यमुना सिटी के रौनीजा गांव के पास बन रहा है। ग्रामीणों का दावा है कि निर्माण कार्य के दौरान भारी मात्रा में बोरिंग से पानी निकाला जा रहा है, जिससे गांवों के पारंपरिक जल स्रोत सूखने की कगार पर हैं। इस जल दोहन से प्रभावित गांवों में रौनीजा, रुस्तमपुर, निलोनी, मिर्जापुर, चक जलालाबाद, खेड़ा मोहम्मदाबाद शामिल हैं। यहां के लोगों का कहना है कि पहले जिन हैंडपंपों से आसानी से पानी मिल जाया करता था, अब उनमें से कई सूख चुके हैं या पानी बहुत नीचे चला गया है।

पीने के पानी पर ही नहीं, खेती-किसानी पर भी पड़ रहा असर 

ग्रामीणों की चिंता सिर्फ पीने के पानी की नहीं है, बल्कि खेती-किसानी पर भी असर पड़ रहा है। रौनीजा गांव के एक बुज़ुर्ग किसान का कहना है कि "अगर यही हाल रहा तो आने वाले महीनों में खेतों की सिंचाई करना भी मुश्किल हो जाएगा।" ग्रामीणों ने इस मुद्दे को लेकर कई बार प्रशासन से शिकायत की, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। किसानों का आरोप है कि शिकायतों के बावजूद विश्वविद्यालय प्रबंधन ने पानी खींचना नहीं रोका है।

किसान संगठनों ने दी आंदोलन की चेतावनी 

इस मामले में किसान संगठनों ने भी हस्तक्षेप किया है। उनका कहना है कि अगर प्रशासन ने जल्द इस पर सख्त कदम नहीं उठाए, तो वे सड़क पर उतर कर आंदोलन करेंगे। एक किसान नेता ने चेतावनी देते हुए कहा कि "जल ही जीवन है, और अगर कोई हमारी धरती का पानी चूसता रहेगा, तो हम चुप नहीं बैठेंगे। जरूरत पड़ी तो यूनिवर्सिटी के गेट पर धरना देंगे।"

ये हैं ग्रामीणों की मांगें 

ग्रामीणों की मांग है कि तुरंत जल दोहन रोका जाए। साथ ही इलाके में गिरते जलस्तर की जांच कराई जाए और गांवों में जल पुनर्भरण के उपाय किए जाएं। साथ ही साथ जो हैंडपंप सूख चुके हैं, उन्हें गहरा करवाने या नए हैंडपंप लगवाने की भी ज़रूरत है।

यह मामला अब सिर्फ जल संकट का नहीं रहा, बल्कि आजीविका और अधिकारों की लड़ाई बनता जा रहा है। गांव के लोग अब एकजुट हो रहे हैं और अगर समय रहते हल नहीं निकला, तो यह आंदोलन लंबा खिंच सकता है।

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