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31 साल पुराने मनीऑर्डर गबन मामले में उपडाकपाल को तीन साल की सजा

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नोएडा। सेक्टर-19 स्थित डाकघर में 31 साल पुराने मनीऑर्डर गबन के मामले में अदालत ने उपडाकपाल को दोषी पाते हुए तीन साल की सजा सुनाई है। साथ ही 10 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है। जुर्माना न देने पर एक वर्ष का अतिरिक्त कारावास भुगतना होगा।


अदालत ने दिया फैसला
अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (एसीजेएम-1) मयंक त्रिपाठी की अदालत ने हापुड़ के पिलखुआ निवासी महेंद्र कुमार को आईपीसी की धारा 409 (लोक सेवक द्वारा आपराधिक न्यासभंग) और धारा 420 (छल) के तहत दोषी करार दिया।

क्या है मामला?
12 अक्टूबर 1993 को सेक्टर-15 निवासी अरुण मिस्त्री ने 1,500 रुपये का मनीऑर्डर अपने पिता मदन महतो (समस्तीपुर, बिहार) के नाम भेजा था। आरोप है कि उपडाकपाल महेंद्र कुमार ने 1,575 रुपये (1500 राशि व 75 रुपये कमीशन) लिए लेकिन सरकारी खाते में जमा नहीं किए।
उन्होंने जाली रसीद जारी कर भेजने वाले को दे दी। जब प्राप्तकर्ता को रकम नहीं मिली, तो अरुण मिस्त्री ने 3 जनवरी 1994 को डाक अधीक्षक सुरेश चंद्र से शिकायत की।

विभागीय जांच में खुला राज
जांच में पता चला कि मनीऑर्डर की रसीद फर्जी थी और धनराशि सरकारी खाते में जमा नहीं की गई थी।
महेंद्र कुमार ने गलती स्वीकार कर 8 फरवरी 1994 को 1,575 रुपये डाक विभाग में जमा किए और लिखित में माफी मांगी। उन्होंने यह भी कहा कि यदि भविष्य में ऐसी कोई घटना सामने आएगी तो वह संबंधित राशि जमा करेंगे। इसके बाद डाक अधीक्षक की शिकायत पर थाना सेक्टर-20 नोएडा में मुकदमा दर्ज हुआ और पुलिस ने महेंद्र के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किया।

अदालत की टिप्पणी
अदालत ने कहा कि अभियोजन ने आरोपी के खिलाफ आरोपों को युक्ति-युक्त संदेह से परे सिद्ध किया है।
“सरकारी सेवक से सर्वोच्च ईमानदारी और निष्ठा की अपेक्षा की जाती है। इस प्रकार के अपराध न केवल सरकारी तंत्र को कमजोर करते हैं बल्कि जनता के विश्वास को भी आघात पहुंचाते हैं।” अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के राम शंकर पटनायक बनाम ओडिशा राज्य (1988) फैसले का हवाला देते हुए कहा—एक बार आपराधिक न्यासभंग का अपराध सिद्ध हो जाने पर बाद में धनराशि लौटाने से अपराध समाप्त नहीं होता।

सजा सुनाते समय क्या कहा अदालत ने सजा सुनाते हुए अदालत ने कहा कि आरोपी की लंबी सेवा और पारिवारिक परिस्थितियों को ध्यान में रखा गया है, लेकिन यह भी स्पष्ट किया गया कि लोक सेवक से कानून का सम्मान करने की अपेक्षा अधिक होती है। न्यायाधीश ने प्राचीन विधिशास्त्री मनु के सिद्धांत का हवाला देते हुए कहा—“दंड ही प्रजा का रक्षक है, इसलिए अपराध पर कठोरता आवश्यक है।”

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