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नमामि गंगे योजना: घाघरा नदी के सरयू में छोड़े गए 64 घड़ियाल के बच्चे

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Noida: घड़ियाल पुनर्वास केंद्र कुकरैल ब्रीडिंग सेंटर पर तैयार किए गए घड़ियाल के बच्चों को वन विभाग और डब्ल्यू आई आई की संयुक्त टीम ने घाघरा नदी में छोड़ा. घाघरा नदी को वन विभाग जीव जंतु को उनके प्राकृतिक वातावरण में पालन पोषण के रूप में भी प्रयोग करता है.

लुप्तप्राय परियोजना के अन्तर्गत बृहस्पतिवार को घड़ियाल पुनर्वास केन्द्र कुकरैल से लखनऊ वन विभाग के अधिकारियों और डब्ल्यू आई आई की संयुक्त टीम ने कुकरैल ब्रीडिंग सेंटर में तैयार किए गए घडियाल के तीन साल के 64 बच्चों को घाघरा नदी में छोड़ा. इस मौके पर लखनऊ वन विभाग की अधिकारी अनामिका सिंह, रेनू सिंह, डीएफओ बहराइच अजीत प्रताप सिंह, वन क्षेत्राधिकारी कैसरगंज मोहम्मद साकिब, वन दरोगा शीतला प्रसाद यादव मौके पर मौजूद रहीं.

घड़ियाल पुनर्वास केंद्र में घड़ियाल के बच्चे हैचिंग के बाद बाहर निकलते हैं. इन्हें तीन साल तक घड़ियाल पुनर्वास केंद्र कुकरैल रखा जाता है. उसके बाद नमामि गंगे योजना के तहत इन्हें नदियों में छोड़ा जाता है.

लखनऊ के कुकरैल में घड़ियाल प्रजनन केंद्र की स्थापना 1975 में हुई थी. आईयूसीएन ने एक अध्ययन में पाया कि उत्तर प्रदेश की नदियों में मात्र 300 घड़ियाल ही बचे हुए हैं. इसके बाद घड़ियालों की गंभीर स्थिति को देखते हुए उन्हें बचाने के लिए वन विभाग की ओर से भारत सरकार के वन मंत्रालय के साथ मिलकर कुकरैल में घड़ियाल पुनर्वास प्रजनन केंद्र की स्थापना की गई.  

कुकरैल घड़ियाल प्रजनन केंद्र ने राज्य की नदियों में लगभग खत्म हो चुके घड़ियालों को पुनर्स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई है. अब गंगा, घाघरा, चंबल, गिरवा समेत कई नदियों में घड़ियालों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है. शुरुआत में घड़ियालों के अंडों को चंबल, गिरवा, रामगंगा, सुहेली नदियों के किनारों से लाकर कुकरैल में हैचिंग कराया जाता था. घड़ियाल मुख्य रूप से मछली खाने वाला सरीसृप है, जो गहरे एवं बहते हुए पानी में रहना पसंद करता है. शरद ऋतु में यह धूप में निकलते हैं.

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