Politics: सपा ने शुरू कर दी 2027 के विधानसभा चुनावों की तैयारी, बसपा के पूर्व नेताओं से चल रहा गठजोड़, पढ़ें

- Rishabh Chhabra
- 09 Apr, 2025
उत्तर प्रदेश में 2027 के विधानसभा चुनावों की तैयारी अभी से शुरू हो चुकी है और सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने अपनी सियासी बिसात बिछा दी है। अखिलेश यादव अपनी पार्टी की 'पीडीए' (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) रणनीति को और मजबूत करने में जुटे हैं। इसी कड़ी में वे लगातार बसपा के पूर्व नेताओं को सपा में शामिल कराकर एक बड़ा सियासी संदेश दे रहे हैं। हाल ही में बसपा के कद्दावर नेता और अंबेडकरवादी विचारधारा के प्रतीक दद्दू प्रसाद को सपा में शामिल कराकर अखिलेश ने यह स्पष्ट कर दिया कि उनकी नजर बसपा के कोर वोट बैंक—दलित समाज—पर टिकी हुई है।
2024 के लोकसभा चुनाव में सपा ने रिकॉर्ड 37 सीटें जीतकर पीडीए रणनीति की सफलता का प्रमाण दे दिया था। इसके चलते ही अखिलेश अब 2027 की सियासत के लिए उसी फॉर्मूले को धार दे रहे हैं। उन्होंने बसपा के बैकग्राउंड वाले नेताओं जैसे सलाउद्दीन, देवरंजन नागर और जगन्नाथ कुशवाहा को भी सपा में शामिल कर यह दर्शाया है कि उनकी रणनीति सिर्फ एक चेहरा जोड़ने की नहीं, बल्कि एक समूचे वोट बैंक को साधने की है।
दद्दू प्रसाद, जो कभी मायावती के बेहद करीबी माने जाते थे और बुंदेलखंड में दलित समाज का बड़ा चेहरा थे, अब सपा की साइकिल पर सवार हो गए हैं। यह कदम न सिर्फ सपा के दलित एजेंडे को मजबूत करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि अखिलेश बसपा को हाशिए पर भेजने की दिशा में तेज़ी से काम कर रहे हैं। मायावती की पार्टी के कई पुराने सिपहसालार जैसे इंद्रजीत सरोज, लालजी वर्मा, रामअचल राजभर और आरके चौधरी पहले ही सपा का दामन थाम चुके हैं।
दलित समाज को साधने के लिए सपा सिर्फ नेताओं को जोड़ने तक सीमित नहीं है, बल्कि ज़मीन पर भी अभियान चला रही है। रामजी लाल सुमन के घर पर करणी सेना द्वारा किए गए हमले को सपा ने ठाकुर बनाम दलित का रंग देते हुए दलित स्वाभिमान से जोड़ने की कोशिश की। इसके जरिए पार्टी ने दलितों के बीच यह संदेश देने की कोशिश की कि सपा ही उनकी असली प्रतिनिधि पार्टी है और भाजपा दलित विरोधी ताकतों के साथ खड़ी है।
अंबेडकर जयंती के मौके पर अखिलेश यादव ने ‘स्वाभिमान-स्वमान समारोह’ आयोजित करने का ऐलान कर पीडीए एजेंडे को और मजबूती दी है। इस आयोजन में समाजवादी बाबासाहेब अंबेडकर वाहिनी और अनुसूचित जाति प्रकोष्ठ की भूमिका अहम रहेगी। अखिलेश ने पार्टी दफ्तर में महर्षि कश्यप, सम्राट अशोक, निषादराज और महात्मा बुद्ध की प्रतिमाएं लगाकर और उन्हें माल्यार्पण कर यह संदेश दिया कि सपा अब समूचे बहुजन समाज को साथ जोड़ना चाहती है।
अखिलेश यादव अब यूपी में भाजपा के 80-20 फॉर्मूले के मुकाबले 90-10 के जातीय समीकरण को साधने का दांव चला रहे हैं। उनका लक्ष्य पिछड़े, दलित, अल्पसंख्यक और अन्य गैर-यादव पिछड़ी जातियों के साथ-साथ सवर्णों के एक हिस्से को भी अपने पक्ष में लाना है। बसपा की लगातार गिरती पकड़ के बीच सपा की यह रणनीति चुनावी समीकरणों को पूरी तरह बदल सकती है।
2027 में यूपी की सत्ता तक पहुंचने के लिए अखिलेश यादव ने जिस तरह से पीडीए का दांव चला है, उससे यह साफ है कि वे अब न सिर्फ समाजवाद, बल्कि अंबेडकरवाद के सहारे भी चुनावी नैया पार करना चाहते हैं।
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