आधुनिक इतिहास यानी कि देश की आजादी से पहले तक अखाड़ों के बीच मत बंटवारे के बावजूद ये सामूहिक रूप से सैन्य तेवर वाले संन्यासी माने जाते थे. राजाओं के बुलावे पर धर्म रक्षा के लिए युद्ध लड़ना, आजादी की लड़ाई में देश भक्तों के साथ सक्रिय रहना. ये सब इस समूह की एक पहचान रही है. कुंभ खुद में आजादी की लड़ाई में देश भक्ति के सामूहिक संचार का एक केन्द्र बनता था.

सैनिकों वाला तेवर रखते हैं नागा संन्यासी
आजादी के बाद अखाड़ों ने अपने सशस्त्र रूप और तेवर को त्याग दिया लेकिन इन अखाड़ों में एक पंथ ऐसा भी है जो आज भी सैनिकों वाला तेवर रखता है. वो हैं नागा संन्यासी. शिव और अग्नि के भक्त माने जाते हैं नागा संन्यासी. मुख्य तौर पर नागा परंपरा में संन्यासी पुरुष ही होते हैं लेकिन अब कुछ महिलाएं भी नागा साधु बनने लगी हैं. हालांकि महिला नागा संन्यासी दिगंबरं की तरह नग्न नहीं रहती, बल्कि भगवा वस्त्र धारण करती हैं. नागाओं की दुनिया में ये नई परंपरा है, मगर नागा साधु बनने की शर्तें वही हैं, जो कि आदिकाल से चली आ रही है.

12 साल की होती है नागा साधु बनने की पूरी प्रक्रिया
नागा साधु बनने की पूरी प्रक्रिया 12 साल की होती है. इसमें पहले का 6 साल संन्यासियों के लिए अहम होता है. इस दौरान संन्यासियों को लंगोट के सिवा कुछ भी पहनने की इजाजत नहीं होती. शुरुआती दौर में ही इन्हें ब्रह्मचर्य का अभ्यास करना होता है. ब्रह्मचर्य में सफल होने के बाद ही इन्हें महापुरुष की दीक्षा दी जाती है. इसके बाद यज्ञोपवीत और बिजवान की प्रक्रिया पूरी करनी पड़ती है. बिजवान में संन्यासियों को अपना श्राद्ध और पिंडदान करना होता है. 2 साल की इस पूरी प्रक्रिया में सफल होने के बाद ही कोई संन्यासी नागा समूह में शामिल हो सकता है. इसके बाद नागाओं को पूरी उम्र कठिन साधना से गुजरना पड़ता है. सर्दी और गर्मी के हिसाब से अपने शरीर को साधना होता है. ये कभी शैय्या पर नहीं सोते, इनका ठिकाना जमीन पर ही होता है. नागा साधु खान पान में दिन में एक ही बार भोजन करते हैं. इसके लिए अगर भीक्षा मांगनी पड़े, तो एक दिन में नागा साधु सिर्फ 7 घरों से ही भिक्षा मांग सकते हैं. इस रहन-सहन से अलग देखें, तो ये समूह स्वभाव से उग्र होता है. एक तरह से ये समूह संत समाज का सैन्य पंथ है यानी युद्ध करने वाला.

इतिहास के कई युद्धों में नागा साधुओं ने दिलाई जीत
इतिहास में ऐसे कई युद्धों का वर्णन मिल जाता है जिसमें जीत नागा संन्यासियों की वजह से सुनिश्चित हुई है. जैसे अहमद शाह अब्दाली का मथुरा-वृन्दावन और गोकुल पर आक्रमण. अब्दाली की सेना के खिलाफ 40 हजार नागा साधुओं ने मोर्चा संभाला था. इस तरह इन्होंने गोकुल की रक्षा की थी. ऐसे आक्रमण के लिए नागा संन्यासियों को ट्रेनिंग अखाड़ों में ही दी जाती थी. ये अपने अपने अखाड़ों में किसी सैन्य रेजीमेंट की तरह बंटकर रहते हैं. ये संन्यासी हमेशा अपने साथ त्रिशूल, तलवार और भाले रखते हैं. देश की आजादी के बाद हालांकि अखाड़ों ने अपना सैन्य चरित्र त्याग दिया है तब से नागा साधु दर्शन के सनातनी मूल्यों के साथ एक शांत जीवन व्यतीत करते आ रहे हैं.

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