भारत सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव को मरणोपरांत देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न देने का ऐलान किया है। 8 बार चुनाव जीतने वाले नरसिंह राव को कांग्रेस पार्टी में 50 साल से ज्यादा समय गुजारने के बाद प्रधानमंत्री बनने का मौका मिला। नरसिंह राव को कई कारणों की वजह से खास माना जाता है। यहां तक कि नरसिंह राव को भारत की राजनीति का चाणक्य कहा जाता है। नरसिंह राव कई भाषाओं के भी जानकार थे। कहा तो ये भी जाता है कि उन्हें 10 भाषाओं में बात करने और उसका अनुवाद करने का महारथ हासिल था। आज हम भारत रत्न से सम्मानित होने जा रहे पीवी नरसिंह राव के बारे में आपको सबकुछ बताने जा रहे हैं।

परिवार के बारे में

श्री पी. रंगा राव के पुत्र श्री पी.वी. नरसिम्हा राव का जन्म 28 जून 1921 को करीमनगर में हुआ था। उन्होंने हैदराबाद के उस्मानिया विश्वविद्यालय, मुंबई विश्वविद्यालय एवं नागपुर विश्वविद्यालय से अपनी पढ़ाई की। श्री पी.वी. नरसिंह राव के तीन बेटे और पांच बेटियां हैं। पेशे से कृषि विशेषज्ञ एवं वकील श्री राव राजनीति में आए एवं कुछ महत्वपूर्ण विभागों का कार्यभार संभाला।

ऐसे हुई राजनीति की शुरुआत

पीवी नरसिम्हा राव आंध्र प्रदेश सरकार में 1962 से 64 तक कानून एवं सूचना मंत्री, 1964 से 67 तक कानून एवं विधि मंत्री, 1967 में स्वास्थ्य एवं चिकित्सा मंत्री एवं 1968 से 1971 तक शिक्षा मंत्री रहे। वे 1971 से 73 तक आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। वे 1975 से 76 तक अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के महासचिव, 1968 से 74 तक आंध्र प्रदेश के तेलुगू अकादमी के अध्यक्ष एवं 1972 से मद्रास के दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के उपाध्यक्ष रहे। वे 1957 से 1977 तक आंध्र प्रदेश विधान सभा के सदस्य, 1977 से 84 तक लोकसभा के सदस्य रहे और दिसंबर 1984 में रामटेक से आठवीं लोकसभा के लिए चुने गए।

विश्व भर में मिली ख्याति

लोक लेखा समिति के अध्यक्ष के तौर पर 1978-79 में उन्होंने लंदन विश्वविद्यालय के एशियाई एवं अफ्रीकी अध्ययन स्कूल द्वारा आयोजित दक्षिण एशिया पर हुए एक सम्मेलन में भाग लिया। श्री राव भारतीय विद्या भवन के आंध्र केंद्र के भी अध्यक्ष रहे। वे 14 जनवरी 1980 से 18 जुलाई 1984 तक विदेश मंत्री, 19 जुलाई 1984 से 31 दिसंबर 1984 तक गृह मंत्री एवं 31 दिसंबर 1984 से 25 सितम्बर 1985 तक रक्षा मंत्री रहे। उन्होंने 5 नवंबर 1984 से योजना मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार भी संभाला था। 25 सितम्बर 1985 से उन्होंने मानव संसाधन विकास मंत्री के रूप में पदभार संभाला।

कला प्रेमी थे पी.वी. नरसिम्हा राव

श्री राव संगीत, सिनेमा एवं नाटकशाला में रुचि रखते थे। भारतीय दर्शन एवं संस्कृति, कथा साहित्य एवं राजनीतिक टिप्पणी लिखने, भाषाएँ सीखने, तेलुगू एवं हिंदी में कविताएं लिखने एवं साहित्य में उनकी विशेष रुचि थी। उन्होंने स्वर्गीय श्री विश्वनाथ सत्यनारायण के प्रसिद्ध तेलुगु उपन्यास ‘वेई पदागालू’ के हिंदी अनुवाद ‘सहस्रफन’ एवं केन्द्रीय साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित स्वर्गीय श्री हरि नारायण आप्टे के प्रसिद्ध मराठी उपन्यास “पान लक्षत कोन घेटो” के तेलुगू अनुवाद ‘अंबाला जीवितम’ को सफलतापूर्वक प्रकाशित किया। उन्होंने कई प्रमुख पुस्तकों का मराठी से तेलुगू एवं तेलुगु से हिंदी में अनुवाद किया एवं विभिन्न पत्रिकाओं में कई लेख एक उपनाम के अन्दर प्रकाशित किया। उन्होंने राजनीतिक मामलों एवं संबद्ध विषयों पर संयुक्त राज्य अमेरिका और पश्चिम जर्मनी के विश्वविद्यालयों में व्याख्यान दिया। विदेश मंत्री के रूप में उन्होंने 1974 में ब्रिटेन, पश्चिम जर्मनी, स्विट्जरलैंड, इटली और मिस्र इत्यादि देशों की यात्रा की।

विदेश मंत्री के रूप में शानदार कार्यकाल

विदेश मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान श्री राव ने अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के क्षेत्र में अपनी शैक्षिक पृष्ठभूमि एवं राजनीतिक तथा प्रशासनिक अनुभव का सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया। प्रभार सँभालने के कुछ ही दिनों बाद उन्होंने जनवरी 1980 में नई दिल्ली में संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संगठन के तृतीय सम्मेलन की अध्यक्षता की। उन्होंने मार्च 1980 में न्यूयॉर्क में जी-77 की बैठक की भी अध्यक्षता की। फरवरी 1981 में गुट निरपेक्ष देशों के विदेश मंत्रियों के सम्मेलन में उनकी भूमिका के लिए श्री राव की बहुत प्रशंसा की गई थी। श्री राव ने अंतरराष्ट्रीय आर्थिक मुद्दों में व्यक्तिगत रूप से गहरी रुचि दिखाई थी। व्यक्तिगत रूप से मई 1981 में कराकास में ईसीडीसी पर जी-77 के सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया।

ये भी उपलब्धि इनके नाम

साल 1982 और 1983 भारत और इसकी विदेश नीति के लिए अति महत्त्वपूर्ण था। खाड़ी युद्ध के दौरान गुट निरपेक्ष आंदोलन का सातवाँ सम्मलेन भारत में हुआ जिसकी अध्यक्षता श्रीमती इंदिरा गांधी ने की। वर्ष 1982 में जब भारत को इसकी मेजबानी करने के लिए कहा गया और उसके अगले वर्ष जब विभिन्न देशों के राज्य और शासनाध्यक्षों के बीच आंदोलन से सम्बंधित अनौपचारिक विचार के लिए न्यूयॉर्क में बैठक की गई, तब श्री पी.वी. नरसिंह राव ने गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों के विदेश मंत्रियों के साथ नई दिल्ली और संयुक्त राष्ट्र संघ में होने वाली बैठकों की अध्यक्षता की थी।

दूसरे देशों के मसलों को भी सुलझाया

श्री राव विशेष गुट निरपेक्ष मिशन के भी नेता रहे जिसने फिलीस्तीनी मुक्ति आन्दोलन को सुलझाने के लिए नवंबर 1983 में पश्चिम एशियाई देशों का दौरा किया। श्री राव नई दिल्ली सरकार के राष्ट्रमंडल प्रमुखों एवं सायप्रस सम्बन्धी मामले पर हुई बैठक द्वारा गठित कार्य दल के साथ सक्रिय रूप से जुड़े हुए थे। विदेश मंत्री के रूप में श्री नरसिंह राव ने अमेरिका, यू.एस.एस.आर, पाकिस्तान, बांग्लादेश, ईरान, वियतनाम, तंजानिया एवं गुयाना जैसे देशों के साथ हुए विभिन्न संयुक्त आयोगों की भारत की ओर से अध्यक्षता की।

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