लोकसभा चुनावों की सरगर्मियां चरम पर हैं। दो चरण पूरे भी हो चुके हैं। वहीं तीसरे चरण के लिए प्रत्याशियों के बीच घमासान मचा हुआ है। ऐसे समय में एक रिपोर्ट सामने आई है। जिसके बारे में जानकार आप भी चौंक जाएंगे। इस रिपोर्ट के अनुसार भारत में इस बार के चुनाव में विश्व के किसी भी देश से ज्यादा खर्च होने जा रहा है। चुनाव संबंधी खर्चों पर पिछले करीब 35 साल से नजर रख रहे गैर-लाभकारी संगठन सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज (सीएमएस) के अध्यक्ष एन भास्कर राव ने ये दावा किया है कि इस लोकसभा चुनाव में अनुमानित खर्च के 1.35 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने की उम्मीद है। जो 2019 में खर्च किए गए 60,000 करोड़ रुपये से दोगुने से भी अधिक है।

अब पब्लिक मीटिंग पर हो रहा ज्यादा खर्च
भास्कर राव की मानें तो इस खर्च में राजनीतिक दलों और संगठनों, उम्मीदवारों, सरकार और निर्वाचन आयोग सहित चुनावों से संबंधित प्रत्यक्ष या परोक्ष सभी खर्च शामिल हैं। प्रारंभिक व्यय अनुमान को 1.2 लाख करोड़ रुपये से संशोधित कर 1.35 लाख करोड़ रुपये कर दिया। इसमें चुनावी बॉन्ड के खुलासे के बाद के आंकड़े और सभी चुनाव-संबंधित खर्चों का हिसाब शामिल है। अब चुनावों में नेता डोर टू डोर प्रचार कम करते हैं। उसकी जगह अब पब्लिक मीटिंग पर ज्यादा खर्च करते हैं। 2014 से चुनावी खर्च बहुत तेजी से बढ़ा है। इसकी वजह है कॉरपोरेट। इसके अलावा अब वर्कर्स पर बहुत खर्च होता है। अब लोकल नेता कम होते हैं, बाहर के नेताओं को ज्यादा टिकट मिलता है। इसलिए भी खर्च बढ़ जाता है।

चुनाव की घोषणा से पहले ही शुरू हो जाते खर्चे
सीएमएस अध्यक्ष के मुताबिक चुनाव की घोषणा से पहले ही खर्चे होने शुरू हो जाते हैं। राजनीतिक रैलियां, परिवहन, कार्यकर्ताओं की नियुक्ति सब पर खर्च होता है। चुनावों के प्रबंधन के लिए निर्वाचन आयोग का बजट कुल व्यय अनुमान का 10-15 प्रतिशत होने की उम्मीद है। भारत में 96.6 करोड़ मतदाताओं के साथ, प्रति मतदाता खर्च लगभग 1,400 रुपये होने का अनुमान है। यह खर्च 2020 के अमेरिकी चुनाव के खर्च से ज्यादा है, जो 14.4 अरब डॉलर या लगभग 1.2 लाख करोड़ रुपये था। इन सबमें सबसे खास बात ये है कि पार्टियां चुनाव आयोग को कम खर्च दिखाती हैं। जबकि खर्च काफी अधिक होता है।

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