लोकसभा चुनावों की सरगरमियां दिन पर दिन बढ़ती जा रही हैं। वहीं अगर चुनावों में होने वाले खर्च की बात करें तो इन चुनावों में पैसा पानी की तरह बहाया जाता है। वहीं आजाद भारत में जब पहला आम चुनाव हुआ था। तब चुनाव आयोग ने लगभग साढ़े 10 करोड़ रुपये का खर्च किया था, लेकिन अब चीजें बहुत बदल गई हैं। अब आम चुनाव कराने में हजारों करोड़ का खर्च आता है। ये तो सिर्फ चुनाव आयोग का खर्च है, लेकिन अगर इसमें राजनीतिक पार्टियों और उम्मीदवारों के खर्च को भी जोड़ दिया जाए। तो ये बहुत ज्यादा हो जाता है। अनुमान है कि 2019 के चुनाव में 60 हजार करोड़ रुपये का खर्च हुआ होगा। इस बार इससे दोगुना खर्च होने का अनुमान है।
हर पांच साल में चुनावी खर्च हो जाता दोगुना
चुनाव आयोग ने तो उम्मीदवारों के लिए खर्च की एक लिमिट तय कर रखी है, लेकिन पार्टियों पर कोई पाबंदी नहीं है। राजनीतिक पार्टियां और उम्मीदवार चुनाव में जीत हासिल करने के लिए पैसा पानी की तरह बहाते हैं। जानकारों की मानें तो इस बार आम चुनाव में 1.20 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च हो सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो ये दुनिया का अब तक का सबसे महंगा चुनाव होगा। इतना ही नहीं हर पांच साल में चुनावी खर्च दोगुना होता जा रहा है। 2014 में लगभग 30 हजार करोड़ के खर्च की बात कही जाती है।
कितना महंगा हो रहा है चुनाव?
चुनाव कराने का पूरा खर्च सरकारें उठाती हैं। अगर लोकसभा चुनाव हैं, तो सारा खर्च केंद्र सरकार और अगर विधानसभा चुनाव हैं तो सारा खर्च राज्य सरकारें करती हैं। वहीं अगर लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ-साथ हैं तो फिर खर्च केंद्र और राज्य में बंट जाता है। चुनाव आयोग के मुताबिक, पहले आम चुनाव में 10.45 करोड़ रुपये खर्च हुए थे। 2004 के चुनाव में पहली बार खर्च हजार करोड़ रुपये के पार पहुंचा। उस चुनाव में 1,016 करोड़ रुपये खर्च हुए थे। 2009 मे 1,115 करोड़ और 2014 में 3,870 करोड़ रुपये का खर्च आया था। 2019 के आंकड़े अभी तक सामने नहीं आए हैं। हालांकि माना जाता है कि 2019 में चुनाव आयोग ने पांच हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का खर्च किया होगा।
पार्टियां कितना खर्च करती हैं?
रिपोर्ट के मुताबिक 2014 के चुनाव में सभी राजनीतिक पार्टियों ने 6,405 करोड़ रुपये का फंड जुटाया था, और इसमें 2,591 करोड़ रुपये खर्च किए थे। जिनमें सात राष्ट्रीय पार्टियों ने बीते चुनाव में 5,544 करोड़ रुपये का फंड इकट्ठा किया था। इसमें से अकेले बीजेपी को 4,057 करोड़ रुपये मिले थे और कांग्रेस को 1,167 करोड़ रुपये का फंड मिला था। वहीं 2019 में बीजेपी ने 1,142 करोड़ रुपये जबकि कांग्रेस ने 626 करोड़ रुपये से ज्यादा का खर्च किया था। 2019 में बीजेपी ने 303 सीटें जीती थीं। इस हिसाब से देखा जाए तो बीजेपी को एक सीट औसतन पौने चार करोड़ रुपये में पड़ी थी। कांग्रेस 52 सीट ही जीत सकी थी, लिहाजा एक सीट जीतने पर उसका औसतन 12 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च हुआ था ।
पब्लिसिटी पर होता है सबसे ज्यादा खर्च
चुनाव आयोग ये सारा पैसा चुनाव के दौरान ईवीएम खरीदने, सुरक्षाबलों की तैनाती करने और चुनावी सामग्री खरीदने जैसी चीजों पर करती है। पिछले साल कानून मंत्रालय ने 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए 3 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का अतिरिक्त फंड मांगा था। राजनीतिक पार्टियों का सबसे ज्यादा खर्च तीन चीजों पब्लिसिटी, उम्मीदवारों और ट्रैवलिंग पर करती हैं। 2019 में अकेले बीजेपी ने ही ट्रैवलिंग पर लगभग ढाई सौ करोड़ रुपये खर्च किए थे। पिछले लोकसभा चुनाव में राजनीतिक पार्टियों ने लगभग 1,500 करोड़ रुपये पब्लिसिटी पर किए थे। इनमें से सात राष्ट्रीय पार्टियों ने 1,223 करोड़ रुपये से ज्यादा का खर्च किया था जबकि पब्लिसिटी पर सबसे ज्यादा खर्च बीजेपी और कांग्रेस ने किया था।
इस साल चुनाव में 1.20 लाख करोड़ रुपये होंगे खर्च
जानकारों की मानें तो इस साल चुनाव में 1.20 लाख करोड़ रुपये खर्च होंगे। इसमें से सिर्फ 20 फीसदी ही चुनाव आयोग का खर्च होगा। बाकी सारा खर्चा राजनीतिक पार्टियां और उम्मीदवार करेंगी। ये खर्च कितना ज्यादा है, इसे इस तरह समझ सकते हैं कि सरकार 80 करोड़ गरीबों को लगभग 8 महीने तक फ्री राशन बांट सकती है। केंद्र सरकार की ओर से अभी हर महीने 80 करोड़ गरीबों को मुफ्त अनाज दिया जाता है। इस पर हर तीन महीने में लगभग 46 हजार करोड़ रुपये का खर्च आता है।