कहते हैं एक कामयाब औरत के पीछे एक मर्द का हाथ होता है. इस बात को पेरिस पैरालंपिक में कांस्य पदक विजेता सिमरन और उनके पति गजेंद्र ने साबित कर दिया है. पेरिस पैरालंपिक में कांस्य पदक जीतने वाली सिमरन के इस सफर में उनके हमसफर कदम-कदम पर उनके साथ रहे हैं. इतना ही नहीं पत्नी की सफलता में उनके कोच बनकर गजेंद्र ने भी अपना अहम योगदान दिया है.

12वीं के बाद से ही खेल को अपना करियर चुना
मोदीनगर के गोयलपुरी की रहने वाली सिमरन के पिता मनोज शर्मा अस्पताल में डॉक्टर के पास पर काम करते थे. मां सविता हॉस्टल में टिफिन सप्लाई करती हैं. परिवार की आय सीमित थी. उन्होंने रुक्मिणी मोदी इंटर कॉलेज से 12वीं पास की है. वह कॉलेज में होने वाली खेल प्रतियोगिताओं में भी हिस्सा लेती थीं. 12वीं के बाद उन्होंने खेल को अपना करियर चुना. सिमरन तीन भाई-बहनों में सबसे छोटी हैं. भाई आकाश एक निजी कंपनी में काम करता है. बहन अनुष्का की शादी हो चुकी है. वहीं चार साल पहले पिता की मौत हो गयी.

गजेंद्र से सिमरन की हुई थी लव मैरिज
6 साल पहले सिमरन की लव मैरिज मोदीनगर तहसील के खंजरपुर गांव में रहने वाले गजेंद्र से हुई थी. सिमरन के पति गजेंद्र सेना में है. जो कि दिल्ली में तैनात हैं. उनके साथ ही सिमरन भी पिछले चार साल से दिल्ली में रह रही हैं. गजेंद्र ने ही सिमरन को दौड़ने की ट्रेनिंग दी. गजेंद्र ने पति के साथ-साथ कोच की भूमिका भी बखूबी निभाई. सिमरन दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में ट्रेनिंग करती थीं. आज सिमरन उन लोगों के लिए एक मिसाल हैं जो अपनी विकलांगता को कमजोरी मानकर रास्ते से हट जाते हैं. सिमरन अपने मजबूत हौसलों से लगातार सफलता हासिल कर रही हैं. सिमरन के भाई आकाश ने बताया कि वह बगल से देख नहीं पाती हैं. सिमरन को सामने भी कुछ दूरी तक ही दिखता है. इसके बावजूद वह अपने काम को लेकर गंभीर रहती हैं. उन्होंने सभी कार्य आत्मनिर्भरता से करती है.

अपनी विकलांगता के आगे सिमरन ने नहीं टेके घुटने
सिमरन शर्मा ने पेरिस पैरालिंपिक में महिलाओं की 200 मीटर टी12 स्पर्धा में 24.75 सेकंड के व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ के साथ कांस्य पदक जीता है. सिमरन दृष्टिबाधित हैं और गाइड के साथ दौड़ती हैं. बचपन में उनकी विकलांगता के कारण उन्हें बहुत परेशान किया गया था लेकिन उन्होंने ने परेशानियों के आगे घुटने नहीं टेके. बल्कि पेरिस पैरालंपिक में सिमरन ने भारत का परचम बड़े शान के साथ लहराया है.

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