चुनावों का दौर चल रहा है तो वहीं जहां कभी यूपी की सियासत में बाहुबली नेताओं का अस्सी के दशक में दबदबा रहा है और नब्बे के दशक में जिनकी तूती बोलती थी। वो बाहुबली नेता अब उत्तर प्रदेश की सियासी पिच से नदारद नजर आ रहे हैं। पश्चिमी यूपी से लेकर पूर्वांचल तक जहां एक समय बाहुबलियों की सियासी रुतबा था, लेकिन इस बार के लोकसभा चुनाव में उनका तिलिस्म टूटता नजर आ रहा है। कुछ बाहुबली नेताओं का निधन हो चुका है तो कुछ जेल की सलाखों के पीछे हैं। राजनीतिक दल भी इन नेताओं से कन्नी काट रहे हैं। जिससे इनकी राजनीतिक विरासत भी खत्म होती दिखाई दे रही है। वहीं जौनपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे बाहुबली धनंजय सिंह को मिली सजा ने सारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। सपा ने बाबू सिंह कुशवाहा को जौनपुर से प्रत्याशी बनाकर धनंजय की पत्नी के चुनाव लड़ने की उम्मीदों का झटका दे दिया है।

मुख्तार और अतीक का सियासी साम्राज्य खत्म होने की कगार पर
मुख्तार अंसारी आज किसी पहचान का मोहताज नहीं, जिसकी पूर्वांचल में तूती बोलती थी, खासकर गाजीपुर, मऊ, बलिया और आजमगढ़ क्षेत्र में। आज मुख्तार अंसारी का निधन हो चुका है तो वहीं मुख्तार के भाई अफजाल अंसारी गाजीपुर लोकसभा सीट से सपा के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरे हैं। तो वहीं उनके करीबी अतुल राय घोसी से चुनाव जीते थे। अतुल राय आज जेल में बंद हैं और घोसी सीट से उन्हें किसी भी पार्टी ने टिकट नहीं दिया है, जिसके चलते चुनावी मैदान से पूरी तरह बाहर हो गए हैं। तो वहीं एक और बाहुबली नेता अतीक अहमद की दबंगई का आलम यह था कि प्रयागराज के इलाके में उनके मर्जी के बिना परिंदा भी पर नहीं मार सकता था। फूलपुर सीट से अतीक सांसद रहे, लेकिन पिछले साल प्रयागराज में उनकी और उनके भाई अशरफ की हत्या कर दी गई थी। अतीक के दो बेटे अभी भी जेल में बंद हैं और उनकी पत्नी फरार हैं। इसके चलते अतीक के परिवार से कोई भी सदस्य इस बार के चुनावी मैदान में नजर नहीं आ रहा है। अतीक का भी सियासी साम्राज्य खत्म होता नजर आ रहा है।

डीपी यादव और गुड्डू पंडित चुनावी पिच से बाहर
जहां एक समय पश्चिमी यूपी में डीपी यादव का सियासी दबदबा था। नोएडा के रहने वाले पूर्व मंत्री डीपी यादव बदायूं से चुनाव लड़ते रहे हैं, लेकिन बसपा और सपा ने किनारा किया तो उनकी सियासी जमीन खिसक गई। डीपी यादव इस बार अपने बेटे के लिए टिकट चाहते थे, लेकिन सपा और बीजेपी दोनों ने ही उन्हें टिकट नहीं दिया। इसी तरह गुड्डू पंडित बुलंदशहर के रहने वाले हैं, लेकिन अलीगढ़ से लेकर फतेहपुरी सीकरी तक से चुनाव लड़ चुके हैं। इस बार उन्हें किसी भी पार्टी ने प्रत्याशी नहीं बनाया है। डीपी यादव और गुड्डू पंडित दोनों ने ही पश्चिमी यूपी के बड़े बाहुबली नेताओं के रूप में पहचान बनाई थी, लेकिन इस बार चुनावी पिच से बाहर हैं.

धनंजय को टिकट की जगह मिली जेल और अमनमणि को मिला धोखा
अपहरण, रंगदारी के मामले में पूर्व सांसद धनंजय सिंह को सात साल की सजा होने के चलते सियासी पिच से बाहर हो गए हैं। धनंजय सिंह जौनपुर सीट से चुनावी मैदान में उतरना चाहते थे, लेकिन उन्हें सजा हो गई। इसके बाद अपनी पत्नी को चुनाव लड़ाने की जुगत में थे। माना जा रहा था कि सपा धनंजय की पत्नी को जौनपुर सीट से टिकट दे सकती है, लेकिन रविवार को बाबू सिंह कुशवाहा को प्रत्याशी बना दिया गया। इसके चलते धनंजय सिंह इस बार लोकसभा चुनाव मैदान में नहीं नजर आएंगे। वहीं कवयित्री मधुमिता शुक्ला हत्याकांड में सजा काट रहे बाहुबली अमरमणि त्रिपाठी ने जेल में रहते हुए अपने भाई अजीतमणि त्रिपाठी को लोकसभा का चुनाव लड़ाया था। बेटे अमनमणि को विधायक बनवाया था, लेकिन इस बार उनके साथ खेला हो गया। अमनमणि त्रिपाठी ने कांग्रेस का दामन थामा और महाराजगंज सीट से टिकट मांग रहे थे, लेकिन कांग्रेस ने उनकी जगह चौधरी बीरेंद्र को प्रत्याशी बना दिया। इसके चलते अमरमणि के परिवार से कोई भी चुनावी रण में नहीं हैं।

उमाकांत और रमाकांत खा रहे जेल की हवा
वहीं तीन बार विधायक और एक बार सांसद रहे उमाकांत यादव भी चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। दरअसल जौनपुर जिले के शाहगंज रेलवे स्टेशन स्थित जीआरपी थाने के 1985 के सिपाही हत्याकांड मामले में बसपा के पूर्व सांसद उमाकांत यादव अब आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं। उमाकांत ही नहीं उनके भाई रमाकांत यादव जेल में बंद हैं. चार बार के सांसद और पांच बार के विधायक बाहुबली नेता रमाकांत यादव फतेहगढ़ जेल में बंद हैं और आजमगढ़ सीट से धर्मेंद्र यादव चुनाव लड़ रहे हैं। नब्बे के बाद से पहली बार रमाकांत का परिवार चुनावी मैदान से नदारद है.

अतीक को चुनौती देने वाले करवरिया बंधु भी मैदान से नदारद
आगरा जेल में बंद ज्ञानपुर के पूर्व विधायक विजय मिश्र की सियासी तूती बोलती थी। हत्या, लूट, अपहरण, दुष्कर्म, एके-47 की बरामदगी जैसे अपराधों से नाता रहा है। चार बार विधायक रहे विजय मिश्र को वाराणसी की एक गायिका के साथ दुष्कर्म के मामले में 15 साल की सजा हो गई। इस बार के चुनावी मैदान से विजय मिश्रा बाहर हो गए हैं। इसी तरह इलाहाबाद में अतीक अहमद को सियासी चुनौती देने वाले करवरिया बंधु भी इस बार के चुनावी मैदान से नदारद हैं। अतीक के सामने कोई चुनाव लड़ने को तैयार नहीं होता था तब करवरिया बंधु ही मैदान में उतरे थे। फूलपुर के पूर्व सांसद कपिलमुनि करवरिया व उनके छोटे भाई पूर्व विधायक उदयभान करवरिया की गिनती भी बाहुबली नेताओं में होती रही है, लेकिन इस बार कोई बड़ा नाम प्रभावी नहीं दिख रहा है।

हरिशंकर तिवारी के बेटे भीम शंकर को मिला चुनावी में उतरने का मौका
पूर्वांचल में एक समय बाहुबली नेता के तौर पर उभरे हरिशंकर तिवारी का दबदबा था। इस बार के चुनाव में हरिशंकर तिवारी के बेटे भीम शंकर तिवारी को डुमरियागंज सीट से सपा ने प्रत्याशी बनाया है। इसके अलावा पूर्वांचल में कोई दूसरा बाहुबली नेता के परिवार से कोई नजर नहीं आ रहा है। बुंदेलखंड में डकैत ददुआ उर्फ शिव कुमार पटेल की सियासी तूती बोलती थी। मिर्जापुर से उनके भाई बाल कुमार पटेल सांसद रह चुके हैं। इसके बाद बांदा सीट से भी चुनाव लड़े, लेकिन इस बार चुनावी मैदान में नहीं नजर आ रहे हैं। वहीं हमीरपुर के कुरारा गांव के रहने वाले अशोक चंदेल बाहुबल के दम पर चार बार विधायक और एक बार सांसद रहे। अशोक चंदेल इस समय एक ही परिवार के पांच लोगों की हत्या के मामले में आगरा जेल में उम्रकैद की सजा काट रहे हैं, जिसके चलते चुनावी मैदान में नहीं हैं। ऐसे ही फर्रुखाबाद के इंस्पेक्टर हत्याकांड मामले में मथुरा जेल में आजीवन कारावास की सजा काट रहे माफिया अनुपम दुबे भी चुनावी रण से दूर हैं। बीजेपी के कद्दावर नेता ब्रह्मदत्त द्विवेदी हत्याकांड में पूर्व विधायक विजय सिंह छह वर्षों से जेल में बंद हैं। विजय सिंह का दमखम कमजोर पड़ चुका है।

बृजेश सिंह के परिवार से भी किसी को टिकट नहीं
उन्नाव के बाहुबली कुलदीप सेंगर जेल में बंद हैं जबकि एक समय उनकी तूती बोलती थी। इसी तरह प्रतापगढ़ जिले में रघुराज प्रताप सिंह का तूती बोला करती थी, उनके रिश्ते में भाई अक्षय प्रताप सिंह सांसद रह चुके हैं। इस बार चुनावी मैदान में नहीं उतरे। इसी तरह बृजभूषण शरण का अपना गोंडा, कैसरगंज में दबदबा है, लेकिन बीजेपी ने अभी तक उन्हें उम्मीदवार नहीं बनाया है। इसी क्षेत्र में बाहुबली और तीन बार के सांसद रिजवान जहीर जेल में बंद हैं, जिसके चलते चुनावी मैदान से बाहर हैं। माफिया बृजेश सिंह का पूर्वांचल में अपना दबदबा है, लेकिन इस बार उनके परिवार के किसी को टिकट नहीं मिला है। ऐसे में चुनावी मैदान से पूरी तरह बाहर हैं।

क्या बाहुबली नेताओं का टूट गया तिलिस्म
देखा जाए तो एक तरह से सभी पार्टियों ने एक समय अपना रुतबा रखने वाले बाहुबलियों से कन्नी काट ली है। अब देखना होगा कि एक समय अपना दबदबा कायम करने वाले बाहुबली क्या फिर से एक बार उठ खड़े होते हैं या फिर जैसी हवा बह रही है उसी ओर चल पड़ेंगे। क्या कभी कायम रहा गुंडाराज अब अपना दम तोड़ देगा। ये तो समय आने पर पता ही चल जाएगा कि कौन कितने पानी में है।

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