लोकसभा चुनाव 2024 में पूर्वांचल का रण काफी दिलचस्प होने वाला है। इस बार पूर्वांचल की 13 सीटों में से केवल एक सीट कांग्रेस के खाते में आई है। जिसका कारण है इंडी गठबंधन। कांग्रेस ने वाराणसी छोड़ अन्य सभी सीटों पर इंडी गठबंधन के अन्य सहयोगियों को समर्थन दिया है। वह प्रत्यक्ष रूप से चुनाव मैदान में नहीं होगी, लेकिन पार्टी के नेता-कार्यकर्ता गठबंधन के सहयोगियों के लिए जरूर वोट मांगते नजर आएंगे। देखा जाए तो कांग्रेस का मजबूत गढ़ माना जाता है पूर्वांचल। लोकसभा चुनाव के इतिहास में यह पहला मौका है, जब इन सीटों पर ईवीएम में कांग्रेस पार्टी का चुनाव निशान हाथ का पंजा नहीं होगा।

कांग्रेस को पूर्वांचल से सिर्फ वाराणसी लोकसभा सीट मिली
पूर्वांचल में वाराणसी और आसपास के तीन मंडलों में कुल 13 लोकसभा सीटें हैं। इनमें से ज्यादातर वह लोकसभा क्षेत्र हैं, जहां वर्षों तक कांग्रेस का एकतरफा वर्चस्व रहा है। पंडित कमलापति त्रिपाठी, त्रिभुवन नारायण सिंह, विश्वनाथ गहमरी, श्यामलाल यादव, जैनुल बशर, मोहसिना किदवई, कल्पनाथ राय, रामप्यारे पनिका सरीखे सांसद इस क्षेत्र ने कांग्रेस को दिए हैं। कई सीटों पर हैट्रिक के साथ कांग्रेस उम्मीदवारों ने लगातार चार-पांच जीत भी हासिल की है। परिणाम चाहे जो भी रहा हो, कांग्रेस हर चुनाव में कोई न कोई प्रत्याशी जरूर उतारती रही है। इससे इतर इस बार पूर्वांचल की 13 में से 12 सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवार ही नहीं हैं। सपा सहित अन्य दलों से हुए गठबंधन के तहत कांग्रेस को पूरे यूपी में सिर्फ 17 सीटें मिली हैं। इसमें पूर्वांचल से सिर्फ वाराणसी लोकसभा सीट है। यहां से भाजपा प्रत्याशी व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ खुद कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय चुनाव मैदान में हैं।

पहला मौका जब कांग्रेस सीधे मैदान में नहीं उतरी
इसके अलावा चंदौली, रॉबर्ट्सगंज, जौनपुर, गाजीपुर, घोसी, बलिया, मछलीशहर, सलेमपुर, लालगंज, भदोही, मिर्जापुर, आजमगढ़ लोकसभा क्षेत्र में कांग्रेस ने सपा या अन्य सहयोगी दलों को समर्थन दिया है। लिहाजा इन सीटों पर कांग्रेस कोई प्रत्याशी नहीं उतारेगी। जानकारों की मानें तो लोकसभा चुनाव में यह पहला मौका है, जब कांग्रेस सीधे मैदान में नहीं है। इससे पहले वर्ष 2017 में हुए यूपी के विधानसभा चुनाव में भी सपा और कांग्रेस में गठबंधन हुआ था। दोनों दल मिलकर चुनाव लड़े थे। इस गठबंधन में कांग्रेस ने 105 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे, जबकि 298 सीटों पर सपा प्रत्याशियों के समर्थन में प्रचार किया था। तब कांग्रेस सात सीटों पर जीत दर्ज कर पाई थी। वहीं सपा को 47 सीटें मिली थीं। इस गठबंधन को कुल 28 प्रतिशत वोट मिले थे। इसमें सपा को 21.8, जबकि कांग्रेस को 6.2 प्रतिशत वोट हासिल हुआ था।

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