Navratri Special: अंग्रेजों के तोप के गोले भी नहीं गिरा सके माता का मंदिर, कभी डकैतों का था पनाहगाह, पढ़ें नवरात्रि पर एक अद्भुत मंदिर की कहानी
- Rishabh Chhabra
- 29 Mar, 2025
यमुना का बीहड़ जहां दूर-दूर तक कोई नजर नहीं आता है, जिसे डकैतों का पनाहगाह बनाया जाता है उसी जगह एक ऐसा मंदिर भी है जहां कभी अंग्रेजों ने तोप के गोले दागे थे, लेकिन मंदिर पर जरा भी आंच तक नहीं आई थी, ये वो मंदिर है जहां खूंखार डकैत अरविंद गुर्जर, निर्भय गुर्जर, फूलन देवी और जगन गुर्जर जैसे लोग शरण लेते थे, लेकिन कोई भी पुलिसिया कार्रवाई यहां उन तक नहीं पहुंच पाई. ये मंदिर कहीं और नहीं बल्कि UP के औरैया जिले में हैं, जहां इन दिनों चैत्र नवरात्रि के अवसर पर खूब भीड़ उमड़ी हुई है.
अंग्रेजों की तोप के गोलों से भी नहीं हिला मंदिर
ऐतिहासिक मान्यताओं के अनुसार, यह मंदिर हजारों साल पुराना है। अंग्रेजी शासनकाल में जब देवकली गांव को तोप के गोलों से उड़ा दिया गया था, तब भी यह मंदिर अडिग बना रहा। कहा जाता है कि माता की यह प्रतिमा स्वयंभू है और ऐसा प्रतीत होता है कि मां दीवार से बाहर निकल रही हैं।
डकैतों की परंपरा बनी आस्था का प्रतीक
डकैतों के जमाने में इस मंदिर में पूजा के बाद हर्ष फायरिंग की जाती थी। इसी दौरान उन्होंने माता को घंटा चढ़ाने की परंपरा शुरू की, जो आज भी जारी है। नवरात्रि के मौके पर भक्तों की लंबी कतारें इस परंपरा को आगे बढ़ा रही हैं।
अब डकैतों के बजाय गूंजते हैं माता के जयकारे
करीब दो दशक पहले तक यहां गांव के लोग आने से भी डरते थे, लेकिन अब माहौल पूरी तरह बदल चुका है। बीहड़ अब दस्यु विहीन हो चुका है और मंदिर में अब माता के जयकारे गूंजते हैं। हर साल नवरात्रि के दौरान यह मंदिर भक्तों की श्रद्धा और विश्वास का प्रमुख केंद्र बन जाता है। जिले के ही नहीं, बल्कि बाहरी राज्यों से भी श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए पहुंचते हैं।
स्थानीय लोगों की बढ़ी श्रद्धा
स्थानीय लोगों के अनुसार, अब इस मंदिर की महिमा दूर-दूर तक फैल चुकी है। पहले जहां लोग इस स्थान पर जाने से भी कतराते थे, वहीं अब दिन-रात माता की पूजा और भजन-कीर्तन की ध्वनि सुनाई देती है। मंदिर की पवित्रता और चमत्कारिक इतिहास इसे भक्तों के लिए और भी विशेष बना देता है।
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