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Akshaya Tritiya Special: परशुराम का दिव्य फरसा आज भी है धरती पर मौजूद, टांगीनाथ धाम से जुड़ा है रहस्य! जानिए पूरी सच्चाई

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हर साल अक्षय तृतीया के दिन भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम जी की जयंती धूमधाम से मनाई जाती है। वर्ष 2025 में परशुराम जयंती 30 अप्रैल को मनाई जाएगी।
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हर साल अक्षय तृतीया के दिन भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम जी की जयंती धूमधाम से मनाई जाती है। वर्ष 2025 में परशुराम जयंती 30 अप्रैल को मनाई जाएगी। परशुराम जी केवल एक महान योद्धा ही नहीं बल्कि 8 चिरंजीवियों में से एक माने जाते हैं, जो आज भी जीवित हैं। उनकी जयंती पर विशेष रूप से उनके दिव्य हथियार 'फरसे' की चर्चा होती है। कहा जाता है कि यह अजेय फरसा आज भी धरती पर मौजूद है। आइए जानते हैं परशुराम जी के इस फरसे से जुड़ी रहस्यमयी कहानी और उसकी शक्ति।

टांगीनाथ धाम में है परशुराम जी का फरसा

झारखंड के गुमला जिले में स्थित टांगीनाथ धाम को लेकर मान्यता है कि यहीं पर परशुराम जी का फरसा स्थापित है। यह स्थान रांची से करीब 150 किलोमीटर दूर है और एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। कहा जाता है कि स्वयं परशुराम जी ने इस पवित्र स्थल पर अपने फरसे को गाड़ा था, जो आज भी वहीं मौजूद है।

खुले आसमान के नीचे है रहस्यमयी फरसा

टांगीनाथ धाम का सबसे बड़ा रहस्य यही फरसा है जो खुले आसमान के नीचे स्थित है, लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि इसमें आज तक कभी जंग नहीं लगी। स्थानीय लोगों और श्रद्धालुओं का मानना है कि यह फरसा दिव्य और चमत्कारी है। इसे जमीन से उखाड़ने के कई प्रयास किए गए लेकिन हर प्रयास विफल रहा। यह अपने आप में एक रहस्य है कि हजारों सालों से यह फरसा कैसे सुरक्षित है।

फरसे से जुड़ी पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान श्रीराम ने जनकपुर में शिव जी का धनुष तोड़ा था, तब परशुराम जी अत्यंत क्रोधित हो गए थे। उन्होंने श्रीराम को अपशब्द भी कहे। लेकिन बाद में जब उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ तो वह पश्चाताप से भर गए। आत्मग्लानि के साथ उन्होंने घने जंगलों में जाकर तपस्या करने का निश्चय किया और वहीं उन्होंने अपना फरसा जमीन में गाड़ दिया। माना जाता है कि टांगीनाथ धाम वही तपोभूमि है।

भगवान शिव से प्राप्त हुआ था फरसा

भगवान परशुराम को यह दिव्य फरसा स्वयं भगवान शिव से प्राप्त हुआ था। परशुराम जी ने शिव की घोर तपस्या की थी जिससे प्रसन्न होकर उन्होंने उन्हें कई दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए थे, जिनमें यह फरसा (परशु) सबसे प्रमुख था। यह फरसा अधर्म के नाश का प्रतीक बना। कहा जाता है कि परशुराम ने इसी फरसे से 36 बार हयवंशीय क्षत्रियों का संहार किया था।

टांगीनाथ धाम बना श्रद्धा का केंद्र

आज टांगीनाथ धाम न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि श्रद्धा और आस्था का प्रतीक भी बन चुका है। दूर-दूर से श्रद्धालु यहां आते हैं और फरसे के दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। परशुराम जी की यह धरोहर आज भी रहस्य, भक्ति और चमत्कार का प्रतीक मानी जाती है।

परशुराम जी का फरसा केवल एक हथियार नहीं, बल्कि एक दिव्य प्रतीक है जो धर्म की रक्षा और अधर्म के विनाश का संदेश देता है। टांगीनाथ धाम में स्थित यह फरसा आज भी परशुराम जी की शक्ति और उपस्थिति का प्रमाण माना जाता है। परशुराम जयंती पर इस स्थान का महत्व और भी बढ़ जाता है, जब लोग हजारों वर्षों पुराने इस चमत्कारी अस्त्र के दर्शन के लिए उमड़ते हैं।

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