Lucknow: क्या सास भी हो सकती है घरेलू हिंसा का शिकार! इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बहू की याचिका पर सुनाया कड़ा फैसला
लखनऊ, सास और बहू के रिश्ते को अक्सर भारतीय समाज में खट्टा-मीठा बताया जाता है। इस रिश्ते में जहां प्रेम और अपनापन होता है,
- Rishabh Chhabra
- 18 Apr, 2025
लखनऊ, सास और बहू के रिश्ते को अक्सर भारतीय समाज में खट्टा-मीठा बताया जाता है। इस रिश्ते में जहां प्रेम और अपनापन होता है, वहीं तकरार और मतभेद भी आम बात है। आमतौर पर घरेलू हिंसा के मामलों में सास को आरोपी और बहू को पीड़िता के रूप में देखा जाता है। लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक हालिया फैसले ने इस परिपाटी को तोड़ते हुए साफ कर दिया कि सास भी घरेलू हिंसा की शिकार हो सकती है और वह भी कानून की शरण ले सकती है।
यह अहम फैसला न्यायमूर्ति आलोक माथुर की एकल पीठ ने सुनाया। मामला लखनऊ की एक निचली अदालत में चल रहा था, जिसमें सास ने अपनी बहू और उसके परिवार के खिलाफ घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के तहत शिकायत दर्ज कराई थी। इस शिकायत को चुनौती देते हुए बहू की ओर से हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी, जिसमें कहा गया कि यह शिकायत बदले की भावना से की गई है, क्योंकि बहू पहले ही ससुराल वालों के खिलाफ दहेज उत्पीड़न और घरेलू हिंसा का केस दर्ज करवा चुकी है।
क्या कहा कोर्ट ने?
हाईकोर्ट ने इस याचिका को खारिज करते हुए निचली अदालत द्वारा बहू और उसके परिवार के खिलाफ जारी समन को वैध ठहराया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 के तहत कोई भी ऐसी महिला जो घरेलू रिश्ते में साझा घर में रह चुकी हो और मानसिक या शारीरिक रूप से प्रताड़ित हुई हो, वह पीड़ित मानी जाएगी और उसे शिकायत दर्ज करने का अधिकार होगा।
कोर्ट ने कहा कि अधिनियम की धारा 2(f), 2(s) और धारा 12 को संयुक्त रूप से पढ़ने पर यह स्पष्ट होता है कि सास भी पीड़ित महिला की परिभाषा में आती है, यदि वह बहू या अन्य परिजनों द्वारा प्रताड़ित की गई हो। इस आधार पर सास की ओर से दायर की गई शिकायत प्रथम दृष्टया सही पाई गई और ट्रायल कोर्ट द्वारा जारी समन को वैध करार दिया गया।
क्या था पूरा मामला?
मूल रूप से मामला लखनऊ से जुड़ा है, जहां एक महिला (सास) ने अपनी बहू के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी। शिकायत के अनुसार, बहू अपने पति (सास का बेटा) पर मायके में जाकर रहने का दबाव बना रही थी और ससुरालवालों को झूठे मामलों में फंसाने की धमकी दे रही थी। सास ने यह भी आरोप लगाया कि बहू का व्यवहार लगातार अपमानजनक और मानसिक रूप से प्रताड़ित करने वाला रहा है।
इस पर बहू की ओर से हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा गया कि यह शिकायत झूठी और प्रतिशोध की भावना से प्रेरित है। लेकिन कोर्ट ने बहू की इस दलील को खारिज करते हुए कहा कि पीड़िता महिला चाहे बहू हो या सास, कानून सबको बराबर सुरक्षा देता है।
महत्वपूर्ण नज़ीर बना फैसला
इस फैसले से यह स्पष्ट संदेश गया है कि घरेलू हिंसा का शिकार कोई भी महिला हो सकती है — चाहे वह बहू हो या सास। अदालत ने यह भी कहा कि कानून का उद्देश्य केवल किसी विशेष रिश्ते को संरक्षण देना नहीं है, बल्कि हर पीड़ित महिला को न्याय देना है।
यह फैसला न सिर्फ सासों को अधिकार देता है, बल्कि घरेलू हिंसा अधिनियम के दायरे को और स्पष्ट करता है। इससे यह समझना जरूरी हो जाता है कि कानून का इस्तेमाल न केवल उत्पीड़न से बचाने के लिए है, बल्कि झूठे मामलों से बचाव और न्याय दिलाने का भी माध्यम है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह निर्णय न केवल कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक दृष्टिकोण से भी एक नया दृष्टिकोण सामने लाता है। यह फैसला याद दिलाता है कि कानून सभी के लिए है — और पीड़िता की पहचान उसके रिश्ते से नहीं, उसकी परिस्थिति से होती है।
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