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Ayodhya में रामलला का बदल गया स्वरुप, अब इस ड्रेस में आएंगे नजर!

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अयोध्या के श्रीराम जन्मभूमि मंदिर में विराजमान रामलला का स्वरूप अब ग्रीष्म ऋतु की सौम्यता में ढल चुका है।
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अयोध्या के श्रीराम जन्मभूमि मंदिर में विराजमान रामलला का स्वरूप अब ग्रीष्म ऋतु की सौम्यता में ढल चुका है। जैसे-जैसे मौसम ने करवट ली है, वैसे-वैसे रामलला के शृंगार, वस्त्र और भोग में भी परिवर्तन किया गया है। यह बदलाव न केवल वैदिक परंपरा का पालन करता है, बल्कि भक्तों के लिए एक गहरा आध्यात्मिक अनुभव भी बन गया है। हर सुबह जब भक्त रामलला के दर्शन को पहुंचते हैं, तो पीले रेशमी वस्त्रों में सजे प्रभु को देखकर उनकी आंखें श्रद्धा और भक्ति से भर उठती हैं।

गर्मी के अनुसार बदला शृंगार और पोशाक

रामनवमी पर्व के उपरांत श्रीराम जन्मभूमि मंदिर प्रशासन द्वारा भगवान के शृंगार और पोशाक में गर्मी को ध्यान में रखते हुए व्यापक बदलाव किए गए हैं। भारी स्वर्ण आभूषणों की जगह अब हल्के चांदी और रत्नजड़ित आभूषणों का प्रयोग हो रहा है। भगवान का मुकुट, कुंडल, कंठहार और अंगवस्त्र—सभी को हल्के व शीतल प्रभाव वाले रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है।

रेशमी पीले, हल्के नीले और गुलाबी रंगों के वस्त्रों का चयन किया गया है, जो न केवल मौसम के अनुकूल हैं, बल्कि उनकी दिव्यता को और निखारते हैं। खास खादी और रेशम के ऐसे वस्त्र उपयोग में लाए जा रहे हैं जो शरीर को शीतलता प्रदान करते हैं और भगवान की सेवा में पूर्ण सौम्यता लाते हैं।

फूलों और अलंकरण में भी नयापन

मंदिर के शृंगार समिति द्वारा यह सुनिश्चित किया गया है कि फूलों की मालाएं भी शीतलता प्रदान करने वाली हों। अब रामलला को चंपा, बेला और गुलाब जैसे गंधयुक्त और ठंडक देने वाले फूलों की मालाएं पहनाई जा रही हैं। यह न केवल भगवान को भौतिक रूप से शीतलता प्रदान करता है, बल्कि भावनात्मक रूप से भक्तों के हृदय को भी शांति और प्रसन्नता का अनुभव कराता है।

भोग में भी हुआ मौसमी परिवर्तन

ग्रीष्म ऋतु को देखते हुए भगवान रामलला के भोग में भी विशेष बदलाव किए गए हैं। अब भोग में ठंडक देने वाले पदार्थ जैसे मिश्री-पानी, गुलकंद, खीर, रबड़ी, और मौसमी फल प्रमुख रूप से शामिल किए जा रहे हैं। यह बदलाव भगवान की सेवा को और भी संपूर्ण और वात्सल्यपूर्ण बनाता है। हर प्रकार से यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि भगवान को मौसम के अनुसार शीतलता और स्नेह मिले।

वैदिक परंपरा का गूढ़ पालन

श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट और मंदिर के पुजारियों का मानना है कि यह परिवर्तन वैदिक परंपरा के अनुरूप है, जिसमें ऋतु के अनुसार भगवान की सेवा की जाती है। यह केवल धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक संवेदना भी है, जो भक्त और भगवान के बीच संबंध को और गहरा बनाती है। ऋतु के अनुसार किया गया यह बदलाव भक्तों के मन में भक्ति और श्रद्धा की नई तरंगें उत्पन्न कर रहा है।

भावनाओं से जुड़ा यह अनुभव

हर सुबह रामलला के दर्शन करने वाले भक्तों के मन में एक नई ऊर्जा और भक्ति की भावना जागृत हो रही है। पीले रेशमी वस्त्रों में प्रभु का दर्शन करना मानो स्वर्गिक अनुभव जैसा हो गया है। भक्तों का कहना है कि ऐसा लगता है जैसे स्वयं भगवान इस रूप में उनके सामने अवतरित हो गए हों।

रामलला का यह ग्रीष्मकालीन स्वरूप यह संदेश देता है कि प्रभु न केवल मंदिर में विराजमान हैं, बल्कि वे हर ऋतु, हर भाव और हर स्थिति में हमारे साथ हैं। यह अलौकिक रूप केवल एक शृंगार नहीं, बल्कि श्रद्धा, परंपरा और प्रकृति के संगम का प्रतीक बन गया है।

हर मौसम में जीवित हैं रामलला

श्रीराम जन्मभूमि मंदिर में किया गया यह बदलाव यह सिद्ध करता है कि भगवान की सेवा सिर्फ एक धार्मिक कर्तव्य नहीं, बल्कि जीवंत परंपरा है जो प्रकृति के साथ तालमेल बिठाते हुए निरंतर चलती रहती है। रामलला हर ऋतु में, हर भक्त के भाव में सजीव हैं—यही उनका सबसे बड़ा चमत्कार है।

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