Mahakumbh में अब कब लगाएंगे नागा साधु आस्था की डुबकी, जानें

- Nownoida editor3
- 16 Jan, 2025
प्रयागराज में 2025 के महाकुंभ मेले का शुभारंभ 13 जनवरी को हुआ था और इसका समापन 26 फरवरी 2025 को महाशिवरात्रि के दिन होगा। इस दिन महाकुंभ के शाही स्नान का अंतिम अवसर होगा। इसके बाद, नागा साधु अपने-अपने अखाड़ों में लौट जाएंगे। अगला कुंभ मेला 2027 में नासिक में आयोजित किया जाएगा, जहां नागा साधु फिर से दिखाई देंगे।
नागा साधुओं की उपस्थिति और महत्व
महाकुंभ मेले में नागा साधुओं की उपस्थिति विशेष होती है। ये साधु वाराणसी के महापरिनिर्वाण अखाड़ा और पंच दशनाम जूना अखाड़ा से आते हैं। कुंभ में उनका पहला शाही स्नान होता है, जिसके बाद ही अन्य श्रद्धालुओं को स्नान की अनुमति मिलती है। नागा साधु त्रिशूल, रुद्राक्ष की माला, और कभी-कभी जानवरों की खाल में नजर आते हैं। उनके शरीर पर भस्म लगी होती है, जो उनके तपस्वी जीवन का प्रतीक है।
कुंभ के बाद नागा साधुओं का जीवन
महाकुंभ के समापन के बाद, नागा साधु अपने-अपने अखाड़ों में लौटकर साधना और ध्यान में लीन हो जाते हैं। ये साधु हिमालय, जंगलों और अन्य एकांत स्थानों में जाकर कठोर तपस्या करते हैं। उनकी तपस्वी जीवनशैली और कठोर साधना उन्हें समाज से अलग करती है। कुंभ के बाद, वे दिगम्बर स्वरूप में नहीं रहते और आश्रमों में गमछा पहनकर निवास करते हैं।
कुंभ का महत्व और स्थान
कुंभ मेला हर 12 साल में चार प्रमुख स्थानों - प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक, और उज्जैन में आयोजित किया जाता है। ज्योतिषीय गणनाओं के अनुसार, इन स्थानों पर विशिष्ट ग्रहों की स्थितियों के दौरान कुंभ मेला लगता है। प्रयागराज में गंगा, यमुना, और अदृश्य सरस्वती के संगम पर, हरिद्वार में गंगा के तट पर, नासिक में गोदावरी नदी के तट पर, और उज्जैन में क्षिप्रा नदी के तट पर कुंभ आयोजित होता है।
महाकुंभ का महत्व धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से अत्यधिक है। नागा साधुओं की उपस्थिति इसे और भी विशेष बना देती है, क्योंकि वे कुंभ के दौरान अपने आध्यात्मिक ज्ञान और तप का प्रदर्शन करते हैं।
Leave a Reply
Your email address will not be published. Required fields are marked *