Parliament से लेकर सरहद तक फैला मिशन, पाकिस्तान पर कूटनीतिक हमला: 30 देशों की यात्रा पर भारत का प्रतिनिधिमंडल

- Rishabh Chhabra
- 19 May, 2025
भारत ने पाकिस्तान की आतंकवाद को प्रश्रय देने वाली नीतियों को वैश्विक मंचों पर बेनकाब करने के लिए एक बड़ा कूटनीतिक हमला शुरू किया है। इस प्रयास के तहत 59 सांसदों का एक प्रतिनिधिमंडल 30 देशों की यात्रा करेगा। इसका उद्देश्य पाकिस्तान के आतंकी नेटवर्क और उसकी भूमिका को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उजागर करना है, ताकि वैश्विक समर्थन भारत के पक्ष में जुटाया जा सके।
यह अभियान सिर्फ विदेश नीति तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके पीछे घरेलू राजनीति का गहरा गणित भी छिपा है। सात संसदीय दलों में शामिल सांसदों की सूची देखी जाए तो स्पष्ट है कि प्रतिनिधिमंडल का गठन क्षेत्रीय और दलगत संतुलन को ध्यान में रखते हुए किया गया है। यह एक साथ दो मोर्चों पर रणनीति का हिस्सा है – पाकिस्तान के खिलाफ वैश्विक दबाव बनाना और देश के भीतर राजनीतिक संदेश देना।
बिहार की खास भूमिका
इस डेलीगेशन में बिहार से सर्वाधिक 6 सांसद शामिल हैं। इनमें से दो टीमों की अगुवाई भी बिहार के सांसद कर रहे हैं – बीजेपी के रविशंकर प्रसाद और जेडीयू के कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा। इसके अलावा शांभवी चौधरी (एलजेपी), मनन मिश्रा (बीजेपी राज्यसभा सांसद), राजीव प्रताप रूडी (बीजेपी) और प्रेमचंद्र गुप्ता (आरजेडी) भी प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा हैं। इससे यह स्पष्ट संदेश जाता है कि बिहार को केंद्र सरकार खास तवज्जो दे रही है।
विपक्ष को साधने की सियासत
इस डिप्लोमैटिक मिशन में विपक्षी दलों को भी जगह दी गई है। डीएमके जैसे सहयोगी दलों को प्रतिनिधित्व मिला है, वहीं कांग्रेस को भी शामिल किया गया लेकिन एक खास रणनीति के तहत। कांग्रेस से सलमान खुर्शीद, शशि थरूर और आनंद शर्मा को शामिल किया गया, लेकिन नेतृत्व की जिम्मेदारी केवल थरूर को सौंपी गई। यह विपक्ष में भीतरखाने संदेश देने की कोशिश है कि साथ लाएंगे लेकिन अपनी शर्तों पर।
नेतृत्व में दिखा राजनीतिक संतुलन
सात में से केवल एक टीम की कमान भाजपा नेता रविशंकर प्रसाद के पास है। एक टीम बैजयंत पांडा के नेतृत्व में है, जो पहले बीजेडी में थे और अब बीजेपी में हैं। बाकी टीमों का नेतृत्व विपक्ष या सहयोगी दलों के नेताओं के पास है। यह इस बात का संकेत है कि यह दौरा केवल पाकिस्तान के खिलाफ नहीं, बल्कि घरेलू स्तर पर विपक्ष को जोड़ने और उन्हें सीमित रूप से भागीदार बनाकर नियंत्रित करने की एक कूटनीतिक चाल है।
संदेश साफ: 'साथ भी, पर शर्तों पर'
भारत सरकार का यह अभियान दोहरे उद्देश्य को साध रहा है – एक तरफ पाकिस्तान की आतंकी साजिशों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उजागर करना और दूसरी ओर विपक्ष को यह संदेश देना कि उन्हें भी मंच मिलेगा, लेकिन नियंत्रण सत्ता पक्ष के पास रहेगा।
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