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Noida: मरीजों को यमराज के पास पहुंचाने में लगी एंबुलेंस, बिना फिटनेस के सड़कों पर धड़ल्ले से लगा रहीं दौड़

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नोएडा और ग्रेटर नोएडा जैसे बड़े शहरों में जहां हर चीज़ में आधुनिकता की बात होती है। वहीं एक हैरान करने वाली लापरवाही सामने आई है। यहां कुछ निजी अस्पतालों की एंबुलेंस ऐसी हालत में हैं कि वो मरीज को अस्पताल पहुंचाने के बजाय यमराज के दर्शन करवा सकती हैं। ये कोई मजाक नहीं, बल्कि हकीकत है कि कई एंबुलेंस बिना जरूरी फिटनेस जांच के ही सड़कों पर दौड़ रही हैं।

मरीजों की जान से खिलवाड़

परिवहन विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक, नोएडा में कुल 670 एंबुलेंस पंजीकृत हैं, जिनमें से 24 एंबुलेंस की फिटनेस की मियाद खत्म हो चुकी है। चौंकाने वाली बात यह है कि ये सभी एंबुलेंस निजी अस्पतालों की हैं। नियमों के मुताबिक, हर दो साल में एंबुलेंस की फिटनेस जांच जरूरी होती है, और 8 साल से पुरानी एंबुलेंस के लिए यह जांच हर साल कराना अनिवार्य होता है।

क्या है फिटनेस जांच और क्यों है ज़रूरी?

फिटनेस जांच का मतलब सिर्फ गाड़ी की हालत देखना नहीं है। इसमें ब्रेक, स्टेयरिंग, टायर, इंजन समेत कई ज़रूरी चीजों की जांच होती है। साथ ही यह भी देखा जाता है कि एंबुलेंस में जो मेडिकल उपकरण लगे हैं, वे सही तरीके से काम कर रहे हैं या नहीं। सोचिए अगर कोई गंभीर मरीज एंबुलेंस में है और गाड़ी रास्ते में खराब हो जाए तो क्या होगा? ऐसे में हर मिनट कीमती होता है, और देरी से जान भी जा सकती है।

विभाग ने कसी नकेल

परिवहन विभाग ने इस लापरवाही को गंभीरता से लेते हुए अब सख्ती शुरू कर दी है। जिन एंबुलेंस मालिकों ने फिटनेस जांच नहीं कराई है, उन्हें नोटिस भेजा गया है। अगर इसके बावजूद भी जांच नहीं कराई गई तो एंबुलेंस जब्त कर ली जाएगी और भारी चालान भी काटा जाएगा। एआरटीओ प्रशासन डॉ. सियाराम वर्मा ने साफ कहा है कि मरीजों की जान से किसी भी तरह का खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

सरकारी अस्पतालों की सभी एंबुलेंस फिट

जहां निजी अस्पतालों की एंबुलेंस चिंता का कारण बनी हैं, वहीं अच्छी बात यह है कि सरकारी अस्पतालों की सभी एंबुलेंस फिट पाई गई हैं। सरकारी गाड़ियों की समय-समय पर जांच होती है और सभी जरूरी मानकों को पूरा किया गया है।

जनता को भी रहना होगा जागरूक

निजी एंबुलेंस को लेकर आम जनता को भी सतर्क रहना होगा। अगर कोई एंबुलेंस बहुत पुरानी या खराब हालत में दिखे, तो उसकी सूचना परिवहन विभाग या हेल्थ विभाग को जरूर पहुंचाएं। ताकि ऐसे निजी अस्पतालों की एंबुलेंस के खिलाफ आवश्यक कार्रवाई की जा सके।  

कुल मिलाकर, यह मामला केवल नियम तोड़ने का नहीं, बल्कि ज़िंदगियों के साथ खिलवाड़ का भी है। इस मामले में समय रहते सख्त कदम उठाना ज़रूरी है ताकि एंबुलेंस मरीजों के लिए मददगार बने, ना कि मौत का रास्ता।

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