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मैदान-ए-कर्बला में हुई शहादत की याद कैंडल मार्च, गंगा जमुनी तहजीब की दिखी झलक, सभी धर्म के लोगों ने लिया हिस्सा

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Noida: पैग़ंबरे इस्लाम मोहम्मद साहब के नवासे और उनके 71 साथियों की मैदान-ए-कर्बला में हुई शहादत की याद को ताजा करने के लिए रविवार शाम को हर साल की तरह नोएडा स्टेडियम के गेट नंबर 4 से मोदी मॉल से सेक्टर-21 से गुजरते हुए सेक्टर-10, 12 की रेड लाइट से होते हुए सेक्टर -22 ए ब्लॉक में समाप्त हुई.

सभी धर्मों के लोगों ने जलाए दीए

हुसैनी यूथ संस्था की जानिब से कैंडल मार्च निकाला गया. हुसैनी यूथ संस्था के प्रवक्ता ने बताया इस कैंडल मार्च में सभी धर्मों के हजारों लोगों ने शिरकत की. गंगा जमुनी तहजीब दर्शाती निकाली गई कैंडल मार्च सभी धर्म के लोगों ने दीए जलाए. आज से 1400 साल कब्ल मैदान-ए-कर्बला में इस्लाम की आने के लिए शहीद हुए  हजरत अली शेरे खुदा के बेटे और पैग़ंबरे इस्लाम मोहम्मद साहब के नवासे हजरत इमाम हुसैन व उनके 71 साथियों को दीप जला कर खिराज-ए-अकीदत पेश की. 

दरअसल, इतिहास में कुछ ऐसे किरदार होते हैं जो केवल धर्म या जाति के दायरे में सीमित नहीं रहते, बल्कि संपूर्ण मानवता के लिए प्रेरणा बन जाते हैं. ऐसे ही महान किरदार हैं इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम— जिन्होंने करबला की ज़मीन पर अपने खून से आज़ादी, सच्चाई और इंसाफ़ की एक अमर कहानी लिखी. इमाम हुसैन का मक़सद इंसान की आत्मा को आज़ाद करना है.

हज़रत इमाम हुसैन का मक़सद सत्ता प्राप्त करना नहीं था, बल्कि इंसान की आत्मा को ज़ुल्म और अधर्म से मुक्ति दिलाना था. जब यज़ीद ने अपनी नाजायज़ हुकूमत के लिए इमाम हुसैन से बैअत (आज्ञा पालन) की मांग की, तो आपने साफ़ कह दिया. "मिस्ली ला यूबायो मिस्लहू" (मेरे जैसा शख़्स किसी यज़ीद जैसे की बैअत नहीं कर सकता) इस कथन में इमाम ने यह स्पष्ट कर दिया कि वो केवल जीने के लिए नहीं, बल्कि इज़्ज़त और उसूलों के साथ जीने के लिए आए हैं.

करबला एक जंग नहीं, एक विचारधारा: 

करबला की जंग तलवारों और भालों की नहीं थी, बल्कि यह सत्य और असत्य के बीच, हक़ और बातिल के बीच विचारधारा की लड़ाई थी. एक तरफ यज़ीद की ताक़तवर सेना थी और दूसरी तरफ इमाम हुसैन का छोटा लेकिन सच्चा काफ़िला.

इमाम हुसैन ने अपने परिवार और साथियों की कुर्बानी देकर ये दिखा दिया कि इंसाफ़ का रास्ता कठिन ज़रूर है, मगर सच्चाई की जीत तय है. ज़ुल्म के सामने झुक जाना एक कायरता है, जबकि हुसैनी रास्ता इज़्ज़त की मौत और ज़ुल्म के ख़िलाफ़ डट कर खड़े होने का रास्ता है.

आज की दुनिया में हुसैन की ज़रूरत:

आज जब इंसाफ़ दब रहा है, ज़ुल्म बढ़ रहा है, और सत्ता भ्रष्ट हो रही है — ऐसे माहौल में हुसैन की याद और ज़्यादा ज़रूरी हो जाती है. हुसैन सिर्फ़ मुसलमानों के नहीं, बल्कि हर उस इंसान के हैं जो आज़ादी, इंसाफ़ और मानवता की बात करता है.

इमाम हुसैन ने नारा दिया:

"ज़िल्लत की ज़िंदगी से इज़्ज़त की मौत बेहतर है" ये सिर्फ़ एक नारा नहीं, बल्कि एक पूरी क्रांति की बुनियाद है. इमाम हुसैन की कुर्बानी किसी मज़हब तक सीमित नहीं है. करबला का पैग़ाम है कि अधर्म, अत्याचार और अन्याय के विरुद्ध हमेशा आवाज़ उठाओ, चाहे उसके लिए जान ही क्यों न देनी पड़े.

हुसैन वो मशाल हैं, जो हर दौर के इंसाफ़पसंदों का रास्ता रौशन करते रहेंगे. आज भी अगर दुनिया में आज़ादी की कोई आवाज़ बुलंद होती है, तो उसमें एक हुसैनी रूह होती है. इस कैंडल मार्च में सभी धर्म के हजारों लोगों ने शिरकत की और एक दिया इमाम हुसैन के नाम का जलाया.

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