Cyber Crime का बड़ा खुलासा: 2 साल में 81 करोड़ का लेनदेन, दिल्ली से आरोपी गिरफ्तार

- Rishabh Chhabra
- 25 Jul, 2025
साइबर अपराध के मामलों में दिन-ब-दिन बढ़ रही गंभीरता को देखते हुए ग्रेटर नोएडा की थाना साइबर क्राइम पुलिस ने एक बड़ी कार्रवाई को अंजाम दिया है। करीब 9 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी में शामिल एक शातिर साइबर अपराधी नीरज मांडिया को दिल्ली से गिरफ्तार किया गया है। पुलिस का दावा है कि यह गिरफ्तारी एक बड़े नेटवर्क की ओर इशारा करती है, जिसकी गहन जांच की जा रही है।
कैसे हुआ था घोटाला?
इस धोखाधड़ी का खुलासा तब हुआ जब एक अस्पताल ने शिकायत की कि उनकी कैशलेस मेडिकल बिलिंग व्यवस्था के तहत भुगतान की जाने वाली राशि में करीब 9 करोड़ रुपये की हेराफेरी हुई है। इस मामले में थाना साइबर क्राइम में मुकदमा संख्या 61/2025 दर्ज किया गया, जिसमें कई धाराओं के तहत मामला पंजीकृत हुआ, जिनमें BNS की धारा 316(4), 318(4), 336(3), 340(2), 338/61(2) व आईटी एक्ट की धारा 66डी शामिल हैं।
पुलिस की जांच में सामने आया कि अस्पताल में पूर्व में कार्यरत रिकवरी अधिकारी व उसके दो साथी पहले ही गिरफ्तार किए जा चुके हैं, और अब उसी कड़ी में एक और अभियुक्त को पकड़ा गया है।
दिल्ली से दबोचा गया शातिर नीरज मांडिया
गिरफ्तार किया गया आरोपी नीरज मांडिया पुत्र ओमप्रकाश, मूलतः एक आम व्यक्ति की तरह प्रतीत होता है, लेकिन पूछताछ में चौंकाने वाले खुलासे सामने आए। नीरज ने बताया कि उसके नाम से “मांडिया ट्रेडर्स” के नाम से एक बैंक खाता खुलवाया गया था, जिसकी मदद से अस्पताल की धोखाधड़ी की गई रकम उसके खाते में ट्रांसफर की गई।
इस जालसाजी के पीछे शुभम नामक युवक और अन्य लोग भी शामिल हैं, जिन्होंने नीरज को केवल ₹10,000 प्रति माह की राशि देने का वादा कर उसका खाता उपयोग किया।
2 साल में 81.36 करोड़ का ट्रांजेक्शन
सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि पुलिस द्वारा जब नीरज के खाते की जांच की गई तो पिछले दो वर्षों में कुल ₹81.36 करोड़ का लेनदेन सामने आया। इससे यह साफ हो गया कि यह कोई एकबार की ठगी नहीं, बल्कि एक सुनियोजित और बड़ा साइबर रैकेट है, जो विभिन्न माध्यमों से ठगी को अंजाम दे रहा है।
जांच जारी, और गिरफ्तारियां संभव
साइबर क्राइम पुलिस का कहना है कि मामले की तह तक जाने के लिए पूरे नेटवर्क की पड़ताल की जा रही है। इस केस से जुड़े और भी लोगों की पहचान की जा रही है और जल्द ही आगे की गिरफ्तारियां हो सकती हैं। पुलिस का मानना है कि यह गैंग देशभर में फैले अन्य अस्पतालों या संस्थानों को भी इसी तरह निशाना बना सकता है।
यह मामला न सिर्फ साइबर ठगी का एक बड़ा उदाहरण है, बल्कि यह भी दिखाता है कि कैसे सामान्य दिखने वाले लोग भी बड़े रैकेट में मोहरा बनकर इस्तेमाल हो रहे हैं। प्राधिकरण द्वारा सतर्कता और जनजागरूकता की जरूरत अब पहले से कहीं ज्यादा है।
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