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Holi Special: भोले की काशी में होली को लेकर मेगा तैयारी, मसाने की होली का है खास महत्व!

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वाराणसी में खेली जाने वाली मसान की होली बहुत प्रसिद्ध है. मगर मसान में खेली जाने वाली इस होली में महिलाओं पर पाबंदी लगा दी गई है.
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वाराणसी में खेली जाने वाली मसान की होली बहुत प्रसिद्ध है. मगर मसान में खेली जाने वाली इस होली में महिलाओं पर पाबंदी लगा दी गई है. इसके साथ ही देवताओं के स्वरुप बनाने और नरमुंड की माला का स्वांग रचाने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है. वहीं मसान की होली के मौके पर महिलाओं के मणिकर्णिका घाट पर आने पर बाबा महाश्मशान नाथ मंदिर कमेटी ने रोक लगाई है. आयोजकों ने अपील करते हुए कहा है कि महिलाएं बजड़े-नाव और कॉरिडोर से ही मसान की होली देखें.

11 मार्च को खेली जाएगी मसान की होली 

दरअसल इस बार काशी के मणिकर्णिका घाट पर 11 मार्च को मसान की होली खेली जाएगी. इस होली को चिता भस्म की होली भी कहा जाता है. मसान की होली शुरुआत दोपहर की आरती के बाद से यानी कि दोपहर बारह बजे से मणिकर्णिका घाट पर हो जाती है. आयोजन कर्ता बाबा महाश्मशान नाथ मंदिर कमेटी ने स्पष्ट कर दिया है कि इस बार घाट पर महिलाएं नही आएंगी. इसके साथ ही महिलाओं से अपील की जा रही है कि वो नाव और बजड़ों पर बैठकर या कॉरिडोर से ही इस होली को देखें. बढ़ती भीड़ और हुड़दंग के कारण महिला सुरक्षा को ध्यान में रखकर आयोजन समिति ने ये फैसला लिया है.

ऐसे होगी मसान होली की शुरुआत

आयोजन समिति के प्रमुख गुलशन कपूर ने जानकारी देते हुए बताया है कि इस बार देवताओं के स्वरुप बनाने और नरमुंड की माला का स्वांग रचाने पर भी प्रतिबंध होगा. बाबा मसान नाथ के गर्भ गृह में पूजा के साथ ही होली की शुरूआत हो जाएगी. इस चिता भस्म की होली देखने के लिए देश-विदेश से लोग यहां पर आते हैं. हर साल मसान की होली को देखने के लिए लोगों की भीड़ बढ़ जाती है. इसको देखते हुए सुरक्षा व्यवस्था को लेकर प्रशासन से मदद ली जाएगी.

स्नान करने मणिकर्णिका तीर्थ पर आते हैं बाबा 

आयोजन समिति के अध्यक्ष ने बताया कि ऐसा माना जाता है कि बाबा दोपहर में मध्याह्न स्नान करने मणिकर्णिका तीर्थ पर आते हैं, इसके बाद सभी तीर्थ स्नान करके यहां से पुण्य लेकर अपने स्थान जाते हैं और उनके वहां स्नान करने वालों को वह पुण्य बांटते हैं. अंत में बाबा स्नान के बाद अपने प्रिय गणों के संग मणिकर्णिका महामशान पर आकर चीता भस्म से होली खेलते हैं. सालों की ये परंपरा आदि काल से यहा भव्य रूप से मनायी जाती रही हैं.

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