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Lucknow: वक्फ विवाद में फंसी उत्तर प्रदेश की 58000 संपत्तियां, 70 साल से जारी ‘खेल’ पर लगेगा विराम? नया बिल बदल सकता है तस्वीर!

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लखनऊ: उत्तर प्रदेश में वक्फ बोर्ड द्वारा लगभग 57,792 सरकारी संपत्तियों पर दावा जताने का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। हाल ही में संसद में पेश किए गए वक्फ संशोधन बिल के कानून बनने के बाद इन संपत्तियों पर फैसला लेने का अधिकार जिलाधिकारियों (DM) को मिल जाएगा।

DM के हाथ में होगा फैसला

अब तक कई सरकारी और निजी संपत्तियां वक्फ बोर्ड के दावे में शामिल थीं, लेकिन ये संपत्तियां राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज नहीं थीं। नए कानून के लागू होने के बाद संबंधित जिलों के DM दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद तय करेंगे कि इन संपत्तियों का मालिकाना हक भविष्य में किसके पास रहेगा।

यूपी अल्पसंख्यक कल्याण विभाग की एक गोपनीय रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि सरकारी और सार्वजनिक उपयोग की ज़मीनें भी राज्य और जिले के वक्फ बोर्ड द्वारा अपनी संपत्ति के रूप में दर्ज की गई हैं। रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 70 वर्षों से इस तरह की अनियमितताएं जारी हैं।

DM करेंगे विवादों की सुनवाई

रामपुर, हरदोई और कई अन्य जिलों में निजी संपत्तियों को भी गलत तरीके से वक्फ संपत्ति घोषित करने की शिकायतें आई हैं। इस मामले में सैकड़ों केस वक्फ ट्रिब्यूनल में लंबित हैं। अब नए कानून के तहत इन सभी मामलों की सुनवाई भी DM के स्तर पर होगी, जिससे पीड़ित पक्षों को न्याय मिलने की संभावना बढ़ गई है।

वक्फ के दावे में 58 हजार से अधिक सरकारी संपत्तियां 

रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में लगभग 58,000 सरकारी संपत्तियां वक्फ बोर्ड के दावे में शामिल हैं, जिनका कुल क्षेत्रफल 11,712 एकड़ बताया जाता है। लेकिन सरकारी नियमों के अनुसार, जो संपत्तियां पहले से सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज हैं, उन्हें वक्फ बोर्ड अपनी संपत्ति घोषित नहीं कर सकता।

हर जिले में विवादित संपत्तियां

उत्तर प्रदेश के हर जिले में सरकारी संपत्तियों पर वक्फ का दावा देखने को मिलता है। कुछ प्रमुख जिलों में विवादित संपत्तियों की संख्या इस प्रकार है:

अंबेडकर नगर – 997

अमेठी – 477

अयोध्या – 2,116

बाराबंकी – 812

सुल्तानपुर – 506

बहराइच – 904

गोंडा – 944

श्रावस्ती – 271

हरदोई – 824

लखनऊ – 368

रायबरेली – 919

सीतापुर – 581

कुलनौ – 5,891

राजनीतिक दल और धर्मगुरु विरोध में

इस बिल के कानून बनने से पहले ही कई मौलाना और धर्मगुरु इसे अदालत में चुनौती देने की बात कह रहे हैं। वहीं, कांग्रेस और समाजवादी पार्टी भी इस कानून का विरोध कर रही हैं। आने वाले दिनों में यह मुद्दा राजनीतिक रूप से और अधिक गरमा सकता है।

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