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इच्छा के बिना पत्नी के साथ अप्राकृतिक सेक्स भी दहेज उत्पीड़न: हाईकोर्ट

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Allahabad: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने एक मामले सुनावई करते हुए कहा कि पत्नी की सहमति से पति द्वारा अप्राकृतिक सेक्स किया जाता है तो इसे अपराध नहीं माना जाएगा। लेकिन जबरदस्ती व बिना सहमति के पत्नी के साथ अप्राकृतिक सेक्स आईपीसी की धारा 377 (1 जुलाई 2024 से पहले के केस में) का अपराध होगा। पति द्वारा दहेज के लिए परेशान करने के लिए इच्छा के विपरीत पत्नी के साथ अप्राकृतिक सेक्स करना दहेज उत्पीड़न का अपराध है। मेडिकल जांच से इनकार करना किसी केस की कार्यवाही को निरस्त करने का आधार नहीं माना जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि दहेज उत्पीड़न के लिए बयान में बताई गई क्रूरता ही पर्याप्त है।


आपराधिक मामले को रद्द करने से इनकार 

न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल ने इमरान खान उर्फ अशोक रत्न की याचिका खारिज करते हुए यह आदेश दिया है। कोर्ट ने दहेज की मांग पूरी कराने के लिए पत्नी के साथ अप्राकृतिक सेक्स कर लगातार परेशान करने के आरोप में लंबित आपराधिक मामले को रद्द करने से इनकार करते हुए याची को जमानत अर्जी दाखिल करने को कहा है।


सहमति से अप्राकृतिक सेक्स अपराध नहीं

हाईकोर्ट के जज ने समलैंगिक संबंधों पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के हवाले से कहा कि दो बालिग सहमति से अप्राकृतिक सेक्स करते हैं तो अपराध नहीं होगा।  आईपीसी की धारा 377 को संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 1921 के विपरीत मानते हुए असंवैधानिक करार दिया है। लेकिन यह स्पष्ट भी किया है कि नाबालिग, जानवर या बिना सहमति पुरुष का स्त्री से अप्राकृतिक सेक्स अपराध होगा। कोर्ट ने कहा कि स्त्री पुरुष का सेक्स नैसर्गिक है। भारत सहित पूरे विश्व ने इस नई परिभाषा को स्वीकार किया है। पत्नी के अलावा अन्य स्त्री की इच्छा के विरुद्ध सेक्स भी अपराध है। कानून में हुए बदलाव के कारण सेक्स की परिभाषा में भी बदलाव आया है। अब समलैंगिक के अप्राकृतिक सेक्स को नैसर्गिक सेक्स के रूप में स्वीकार किया गया है।


पत्नी ने पति के खिलाफ दर्ज कराई एफआईआर

गौरतलब है कि पीड़िता ने पति के खिलाफ प्रयागराज के शिवकुटी थाने में एफआईआर दर्ज कराई है। याचिका में कहा गया था कि शिकायतकर्ता व आरोपी पति, पत्नी हैं। इसलिए अप्राकृतिक सेक्स का अपराध नहीं हो सकता। साथ ही दहेज की विशेष मांग का आरोप नहीं है, इसलिए मुकदमे की कार्यवाही रद्द की जाए। कोर्ट ने याची के तर्कों को भ्रामक करार देते हुए मामले में हस्तक्षेप से इनकार कर दिया।

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