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Mahakumbh में कितने तरह के आये हैं नागा साधु, क्या कुछ खाते हैं सब पढ़ें

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हमेशा से ही नागा साधुओं के स्नान से महाकुंभ की शुरुआत होती आ रही है. कुंभ के दौरान ही नागा साधु देखने को मिलते हैं. जबकि कुंभ खत्म होते ही पर नागा साधु वापस लौट जाते हैं. हालांकि नागा साधु जाते कहां हैं इसके बारे में किसी को कोई जानकारी नहीं है. मगर कहा जाता है कि ये नागा साधु तपस्या के लिए पहाड़ों और जगंलों में चले जाते हैं. जहां लोग इन्हें ढूंढ न सकें और वे वहां पर आराम से अपनी साधना कर सकें. 

चार तरह के होते हैं नागा साधु 

कहा जाता है कि नागा साधु चार प्रकार के होते हैं. प्रयाग में होने वाले कुंभ में दीक्षित नागा साधु को राजेश्वर कहा जाता है क्योंकि ये नागा साधु संन्यास के बाद राजयोग की कामना रखते हैं. उज्जैन कुंभ से दीक्षा लेने वाले साधुओं को खूनी नागा कहा जाता है. जिसकी वजह ये है कि इनका स्वभाव काफी उग्र होता है. हरिद्वार दीक्षा लेने वाले नागा साधुओं को बर्फानी कहते हैं क्योंकि ये शांत स्वभाव के होते हैं. वहीं नासिक कुंभ में दीक्षा लेने वाले साधु खिचड़ी नागा कहलाते हैं. दरअसल इनका कोई निश्चित स्वभाव नहीं होता है.

भिक्षा मांगकर भोजन करते हैं शाकाहारी नागा साधु 

अधिकतर नागा साधु शाकाहारी होते हैं. कुछ नागा साधु ही ऐसे होते हैं जो मांस आदि का भक्षण करते हैं. जो नागा साधु मुख्य रूप से शाकाहारी होते हैं. वे भिक्षा मांगकर भोजन करते हैं और साधारण भोजन ही करते हैं. इसके साथ ही ऐसे नागा साधु सात्विक आहार पर बल देते हैं. जिसमें फल, सब्जियां और अनाज शामिल होते हैं. नागा साधुओं का नियम होता है कि वे आमतौर पर दिन में एक बार ही भोजन करते हैं और 7 घरों से अधिक भिक्षा नहीं ले सकते हैं. 

नागा साधु बनने में लगते हैं 6 साल 

नागा साधु बनने की प्रक्रिया काफी लंबी और कठिनाइयों से भरी हुई होती है. पंथ में शामिल होने के लिए साधकों को तकरीबन 6 साल का समय लग जाता है. साधकों को नागा साधु बनने के लिए तीन चरणों से होकर गुजरना पड़ता है. जिनमें से पहला महापुरुष, दूसरा अवधूत और तीसरा दिगंबर चरण होता है. अंतिम संकल्प लेने तक नागा साधु बनने वाले नए सदस्य केवल लंगोट पहने रहते हैं. कुंभ मेले अंतिम संकल्प दिलाने के बाद वे लंगोट का त्याग कर जीवन भर दिगंबर रहते हैं.

नहीं होता है नागा साधुओं का दाह संस्कार
कहते हैं कि नागा साधुओं का दाह संस्कार नहीं किया जाता है. बल्कि नागा साधुओं की मृत्यु के बाद उनकी समाधि लगा दी जाती है. उनकी चिता को आग नहीं दी जाती है क्योंकि ऐसा करने पर दोष लगता है. ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि नागा साधु तो पहले ही अपना जीवन समाप्त कर चुके होते हैं. अपना पिंडदान करने के बाद ही वह नागा साधु बनते हैं इसलिए उनके लिए पिंडदान और मुखाग्नि नहीं दी जाती है. नागा साधुओं को भू या जल समाधि दी जाती है.

नागा साधुओं के 13 अखाड़ों में सबसे बड़ा जूना अखाड़ा

वहीं नागा साधुओं को समाधि देने से पहले स्नान कराया जाता है और इसके बाद मंत्रोच्चारण कर उन्हें समाधि दी जाती है. जब किसी नागा साधु की मृत्यु हो जाती है तो उनके शव पर भस्म लगाई जाती है और भगवा रंग के वस्त्र डाले जाते हैं. नागा साधु की समाधि बनाने के बाद उस जगह पर सनातन निशान बना दिया जाता है ताकि लोग उस जगह को गंदा न करें. उन्हें पूरे मान-सम्मान के साथ विदाई दी जाती है. नागा साधु को धर्म का रक्षक भी कहा जाता है. नागा साधुओं के 13 अखाड़ों में सबसे बड़ा जूना अखाड़ा है, जिसके लगभग 5 लाख नागा साधु और महामंडलेश्वर संन्यासी हैं.

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