25 जून 1975, वो तारीख जिसे इतिहास में काला दिन कहा जाता है। इमरजेंसी ने विपक्ष में जेल में ठूंस दिया, तो नागरिकों के मूल अधिकार छिन गए। लेकिन इस आंतरिक आपातकाल की नींव एक मुकदमा था, जो कांग्रेस की परम्परागत सीट से जुड़ा हुआ था। क्या थे वो संयोग और वो मुकदमा, जिसकी सजा पूरे देश ने काटी…

वो मुकदमा, जिसकी सजा पूरे देश को मिली

ये मुकदमा था राज नारायण बनाम इंदिरा नेहरू गांधी। साल 1971 के लोकसभा चुनाव में इंदिरा की अगुवाई में कांग्रेस (आर) ने 352 सीटें हासिल करके जबरदस्त जीत दर्ज की थीं। अपनी परम्परागत रायबरेली सीट से खुद इंदिरा बड़े अंतर से जीतीं थीं। उनके प्रतिद्वंदी थे विपक्षी महागठबंधन के प्रत्याशी दिग्गज समाजवादी नेता राज नारायण। 7 मार्च 1971 को मतदान हुआ और 9 मार्च से मतगणना शुरू हुई। फिर 10 मार्च को घोषित नतीजे के अनुसार इंदिरा गांधी को 1,83,309 और राजनारायण को 71,499 वोट मिले, लेकिन राजनारायण ने इसे स्वीकार नहीं किया और इलाहाबाद हाईकोर्ट में इंदिरा गांधी का निर्वाचन रद्द करने के लिए नियत अवधि की आखिरी तारीख 24 अप्रैल 1971 को चुनाव याचिका प्रस्तुत की।

जब फैसला आया इंदिरा गांधी के खिलाफ

12 जून 1975 को जस्टिस सिन्हा सुबह 9.55 पर अदालत में पहुंचे, चैंबर खचाखच भरा था। 258 पेज के फैसले में इंदिरा का रायबरेली से निर्वाचन दो बिंदुओं पर अवैध और शून्य घोषित किया गया। सरकारी सेवा में रहते हुए चुनाव में यशपाल कपूर की सेवाओं को प्राप्त करने का आरोप सही पाया गया। मंच- माइक्रोफोन-शामियाने आदि की सरकारी खर्च से व्यवस्था के कारण भी उन्हें लोकप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 123 (7) के अधीन चुनावी कदाचरण का दोषी पाया गया। अगले छह साल के लिए किसी संवैधानिक पद के लिए उन्हें अयोग्य करार दिया गया।

और फिर लगा आंतरिक आपातकाल

उस समय ब्रेकिंग न्यूज का जमाना नहीं था, पत्रकार और खुफिया विभाग के लोग टेलीफोन की ओर भागे और राजनारायण के वकील जश्न के माहौल में समर्थकों से घिरे थे। हाईकोर्ट में इंदिरा के वकील जस्टिस सिन्हा के रिटायरिंग रूम में सुप्रीम कोर्ट में अपील तक फैसले पर स्टे की गुजारिश कर रहे थे। जस्टिस सिन्हा ने कहा कि इसके लिए उन्हें दूसरे पक्ष को सुनने का अवसर देना होगा। राजनारायण के वकीलों के पहुंचने तक जस्टिस सिन्हा अपने फैसले का क्रियान्वयन 20 दिन के लिए स्थगित कर चुके थे। इलाहाबाद की अदालत के इस फैसले की गूंज अब देश के कोने-कोने में थी।

24 जून 1975 को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस वी.कृष्णा अय्यर की अवकाशकालीन एकलपीठ ने हाईकोर्ट के 12 जून के आदेश के क्रियान्वयन पर सशर्त रोक लगा दी। इस आदेश के तहत इंदिरा गांधी का प्रधानमंत्री पद सुरक्षित हुआ। वह संसद में बैठ सकती थीं लेकिन उन्हें सांसद के तौर पर सदन में वोट देने का अधिकार नहीं था। अगले ही दिन 25 जून को इंदिरा गांधी ने आंतरिक आपातकाल की घोषणा कर दी। विपक्षियों की बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियों के साथ ही नागरिकों को उनके मूल अधिकारों से वंचित कर दिया गया।

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